Thursday 25 December, 2008

कुछ तो था कुछ तो है


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122008

कुछ तो था कुछ तो है
तेरे-मेरे बीच सजनी
वरना तुम यहाँ न आती
वरना यादें तेरी न होती

यूँ बरस गुज़रते हैं
तेरे लिए तड़पते हैं
तन्हा-तन्हा रात-दिन
तेरे लिए तुम बिन

कुछ तो था कुछ तो है
तेरे-मेरे बीच सजनी…

तुमको पाना है मुझे
मुझको अपनाना है तुझे
ग़म ख़ुशी बन जायेगा
दोनों को क़रीब लायेगा

वरना तुम यहाँ न आती
वरना यादें तेरी न होती…

ख़ाब सच हो जायेंगे
हम-तुम मिल जायेंगे
प्यार होगा दरम्याँ
तेरी आँखों में मेरा जहाँ

कुछ तो था कुछ तो है
तेरे-मेरे बीच सजनी…

यह मौसम भी तुम हो


यह मौसम भी तुम हो,
यह सावन भी तुम हो,
तुम हो… मेरे लिए…
मेरे सनम भी तुम हो
तुम नहीं होते’ तो तुम्हारा एहसास होता है
कोई जगता है रातों में, ख़ाबों के बीज बोता है
यह बिजली भी तुम हो,
यह बदली भी तुम हो,
तुम बूँदों में बरसती हो…
यह रिमझम भी तुम हो
गीले मन को बहुत सुखाया, मगर सूखा नहीं
मन है उदास तेरे लिए, मगर रूखा नहीं
यह अगन भी तुम हो,
यह लगन भी तुम हो,
तुम हो मन-दरपन…
मेरा दरपन भी तुम हो
कितनी बार देखा है, साहिलों पर खड़े हुए
तुम आ रही हो, मुझको ढूँढ़ते-पुकारते हुए
यह जीवन भी तुम हो,
यह धड़कन भी तुम हो,
तुमसे है मेरा यौवन…
मेरा यौवन भी तुम हो
इश्क़ ने ढूँढ़ा तुझे, प्यार ने छूना चाहा तुझे
मैं तेरा प्यार हूँ, आवारा न समझ मुझे
यह मौसम भी तुम हो,
यह सावन भी तुम हो,
तुम हो… मेरे लिए…
मेरे सनम भी तुम हो

तेरे चेहरे पर अपनी नज़र ढूँढ़ते हैं


हर गली हर कूचा दर-ब-दर ढूँढ़ते हैं
हम अपनी दुआ में असर ढूँढ़ते हैं

तुम देखकर हँसते हो मुझे और हम
तेरे चेहरे पर अपनी नज़र ढूँढ़ते हैं

कौन दूसरा होगा हम-सा सितम-परस्त
हम अपना-सा कोई जिगर ढूँढ़ते हैं

जो राह मंज़िल तक पँहुचती होगी
तेरी चाहत में ऐसी रहगुज़र ढूँढ़ते हैं

धूप छुप गयी है कोहरे से भरी वादियों में
और हम हैं कि तेरा नगर ढूँढ़ते हैं

तुमने कहा नहीं कि कब आओगे तुम
हम तुझे अपनी राह में मगर ढूँढ़ते हैं

Sunday 14 December, 2008

पत्थर पे पत्र

हम भी देखे
तुझे
कैसी हरियाली
तेरे आँचल में
सुना बहुत
मौका मिला
देखेंगे हम

सूना शहर
हर शाम को
सपनों में, पर
दो मुझे आँख
हाथ औ, दिल
मैं लिख सकूँ
पत्थर पे पत्र
तेरे नाम

हम भी देखें
सर्प सी
पगदंदिया
और याद आ जाए हमें
जीवन की राह

शायद सुनें हम कूक
तो भूलें
हम आह, शायद
दिन में हो रात
सूरज या चाँद?
सोचेंगे दाल के
हम पैर झरने में
किसी निस्तेज

हम भी देखें
चढ़ के किसी पहाड़ पे
गहरी घटी
और सहम मर
हम कुछ और
सरक जाए
तेरे करीब

कुछ ख्वाब बुनें
हम भी देखें
कोई आवारा बादल
लुप्त सा होता हुआ
डाली में फंसकर
जो लोटता

जा रहा
अपनत्व अपना
थोड़ा रोकर
और, थोड़ा सा
विहंसकर
हम भी देखें
पलकों के तले
बिखर जाना

यूँ ही कुछ
दूर तक
पत्तो की मानिंद
बन के हवा
हम भी कुछ
दूर बहे

पत्थर बनके कुछ चोट तेरी
हम भी सहें
नदीं के बीच पड़े रेत से
कुछ धुप गहें
मगर मैं भूल

गया साँस आखिरी है
मेरी, मैं तो बस
जाल में ही रह
गया हूँ
जो बुना था
मैंने अपने तार से
मुझको है संतोष

की एक
सूरज की
किरण
आ रही है
सामने
दरार से !

Saturday 13 December, 2008

हम

मैं और गम
जब हम हुए
वो मोगरा हरसिंगार सी
तुम्हारी खुशबू
खिलते कमल सी हंसी
सुबह की ओंस में
डूब से नम हुए
मैं और तुम
जब हम हुए
पीपल के पत्तों पर मेंहदी
जैसे तुम्हारे हाथ
चेरी के रंग जैसे होंठ
पछवा हवा से साँसें
फासलें कितने कम हुए
मैं और तुम
जब हम हुए
उंगलिया छुई-मुई सी
लौट लौट गयी हथेलियों में
पलकों के घूंघट में बंद
रही तुम्हारी चाहत
फ़िर हम ही तो बेशरम हुए
मैं और तुम
जब हम हुए
मानसूनी बादलों सी जुल्फें
दांत बिजली की चमक
बातें सावनी रिमझिम
तुम हमारी इबादत
हमारे धरम हुए
मैं और तुम
जब हम हुए

बहुत मुश्किल है

मेरे प्यार को तुम
महसूस नहीं कर सकते
आसानी से
क्योकि मैं
सूखी घास नही हूँ
जिसकी गर्मी
पाने के लिए
दो पत्थरों
रगड़ना ही काफी हो
मैं तो
बुझे से दिखने वाले
अंगारों का ढेर हूँ
जो सहर तक
आग संभाल
सकते है
जानों की जो राख
ओढ़ लेते है
वो जल्दी राख नहीं होते

प्रार्थना

ऐसा नही है तेरे दिए हम हर दुःख सह सकते है
पर तू है मालिक दुनिया का क्या तुझको कह सकते है
जिसके लिए हम जिन्दा थे रहता था जो इस दिल में
अपनी हिम्मत देखो उस बिन भी हम रह सकते है
तुझसे डरते थे हम हरदम तेरा गुन गाते थे
आंसू कुछ कम कर ले भगवन हम अब बह सकते है
तूफानों के दौर बिजलियों के आघात को कम कर
रेत बचा है दीवार में ये घर ढह सकते है
तेरी दया किहमने कमी वैसे महसूस नहीं की
पर दर्द के ऐसे तीखे वारो को क्या कह सकते है

Sunday 7 December, 2008

तेरे ख्यालो से

तेरे खयालो से महकी सी मेरी तन्हाई है
मुझे हर आहट पे लगे शायद मिलने तू आयी है


है ये लहराती ठंडी हवा या आँचल उड़ता तेरा
खुशबु तेरी हर सूँ छाई है ....................

अय हँसी
तू ही मेरी साँसों में है घुली तू ही मेरी आंखों में है बसी मेहरून महजबीं
सच तो ये है के देखू कही लगता है मुझको तू है वही
रंग है जितने तू ही लाई है ..............................

कहानी

फिर एक कहानी सी दोहराई जाए है
नींद इन आंखों से चुराई जाए है
हमे मालूम है इसका भी अंत दर्द होना है
क्यूँ एक खुशी दिल के करीब लाई जाए है
मैं हूँ शोलो का दीवाना तपिश से प्यार है मुझको
ए शबनम ठहर जा आंखों में नमी आए जाए है
चंद अशआर, कुछ आंसू धड़कता हुआ एक दिल
मुद्दतो बाद ए दौलत कमाई जाए है
जाऊं कहाँ इस गली में पशोपेश में हूँ अनिल
कभी जनाजा जाए है कभी शहनाई जाए है

Saturday 6 December, 2008

कटी पतंग

अब जिंदगी में तल्खियों का रंग ही आए
कलम को दर्जे गम मरने का कुछ ढंग ही आए

इस कदर मासूमियत किस काम की है दोस्त
करीब जब भी आए दूरियों के संग ही आए

खुदा जाने ये किसने लिख दिया छत के नसीब में
जब आए तो फ़कत एक कटी पतंग ही आए

करें चर्चा क्या उसकी अंदाजे बयानी का
जिसकी हँसी के सामने जलतरंग ही आए

एक तरफ़ फ़र्ज़ है रोज़गार है प्यार है एक ओर
अब इस कशमकश से हम अनिल तंग ही आए

क्या चाँद मेरा है

चाँद को देखते हुए मैंने सोचा
क्या ये चाँद मेरा है
पर वो चाँद
जो किसी सूरज की रौशनी से इतरा रहा
उसे क्या मालूम
कोई दूर खड़ा
एक कोने से उसे निहार रहा
पर क्या वह उसे बता सकेगा
तुम्हारी चाँदनी मेरे अन्दर मे उजाला कर रही है
मुझे जीने का सहारा दे रही है
वह अंधेरे कोने में खड़ा हो के यह सोच रहा
क्या चाँद यह समझ सकेगा
कोई एक अपने अन्दर असीम उत्साह लिए
यह सोच रहा की
क्या यह चाँद मेरा होगा
लेकिन
क्या वह उजाला सह सकेगा
शायद नही
उसे चाँद चाहिए
लेकिन वह अपने अंदर के अंधेरे से डरता है
शायद यही अँधेरा उसकी नियति है
वह सूरज से लड़ सकता है
पर
चाँद की चाँदनी उसे जला रही है
वह चाँद के पास नही जाता
शायद उसे डर है
उसके मन मे एक सवाल है
क्या चाँद उसे अपना अँधेरा भी देगा
या वह कुछ पाने की अभिलाषा लिए
यूँ ही इस जहा से चला जाएगा

प्यार

सोच समझकर करना पंथी यहाँ किसी से प्यार
चंडी का यह देश यहाँ के छलिया राजकुमार
किसे यहाँ अवकाश सुने जो तेरी करून कराहे
तुझ पर करे बयार यहाँ सूनी है किसकी बाँहे
बादल बन कर खोज रहा है तू किसको इस मरुस्थल में
कौन यहाँ व्याकुल हों जिसकी तेरे लिए निगाहें
फूलो की यहाँ हाट लगी है मुस्कानों का मेला
कौन खरीदेगा यहाँ तेरे सूखे आंसू दो चार
सोच समझ कर करना पंथी यहाँ किसी से प्यार

मेरा कच्चा आँगन

सौंप दी है तुम्हे अपने सपनो की धरती
अपने सपनो का आकाश
अब बोओं तुम बीज
भरो तुम रंग
इन्द्रधनुष के ....
चाँदनी के .............
अमावस के..............
या फिर मेरे-तुम्हारे
फिर जियो तुम और पियो तुम
लौटा नही सकते तुम मुझे
मेरे हिस्से के जमीं अम्बर
क्योकि अब मैं नहीं हूँ...............
मैं तो हो गयी हूँ तुम............
आती है ना तुम्हे
महक मेरे कच्चे आँगन की
अपने दिल से ..................
एक तस्वीर जो ख्वाबो को सजा जाती है
कितने सोये हुए जज्बात जगा जाती है
आज भी प्यार से पुरनम है वो नजर की शबनम
स्याह रातों मं थपक दे के सुला जाती है

प्रतीक्षा के पल

जहाँ भी देखू तुम्ही हो हर ओर
प्रतीक्षा के पल फिर कहा किस ओर ......

चेहरे पर अरुणाई खिल जाती है
धड़कने स्पंदन बन मचल जाती है
यादों की बारिश में नाचे मन मोर...............

कब तनहा हूँ जब साथ तुम हो बन परछाई
साथ देख कर तुम्हारा खुदा भी मांगे मेरी तन्हाई
मेरे हर क्षण को सजाया तुमने चितचोर...............

मेरे संग चाँद भी करता रहता है इंतज़ार
तेरी हर बात को उससे कहा है मैंने कितनी बार
फिर भी सुनता है मुस्कुरा कर, जब तक न होती भोर.................

तुम्हारे लिए हूँ मैं शायद बहूत दूर
तुम पर पास मेरे जितना आँखों के नूर
मेरी सांसो को बांधे तेरे स्नेह की डोर ...................

खुश रहो

ज़िन्दगी है छोटी, हर पल में खुश रहो ...
ऑफिस में खुश रहो, घर में खुश रहो ...

ჯહઔહჯ═══■■═══ჯહઔહჯ

आज पनीर नहीं है , दाल में ही खुश रहो ...
आज जिम जाने का समय नहीं , दो कदम चल के ही खुश रहो ...

ჯહઔહჯ═══■■═══ჯહઔહჯ

आज दोस्तों का साथ नहीं, टीवी देख के ही खुश रहो ...
घर जा नहीं सकते तो फ़ोन कर के ही खुश रहो ...

ჯહઔહჯ═══■■═══ჯહઔહჯ


आज कोई नाराज़ है, उसके इस अंदाज़ में भी खुश रहो ...
जिसे देख नहीं सकते उसकी आवाज़ में ही खुश रहो ...

ჯહઔહჯ═══■■═══ჯહઔહჯ

जिसे पा नहीं सकते उसकी याद में ही खुश रहो
Laptop न मिला तो क्या , Desktop में ही खुश रहो ...

ჯહઔહჯ═══■■═══ჯહઔહჯ


बिता हुआ कल जा चूका है , उसकी मीठी यादों में ही खुश रहो ...
आने वाले पल का पता नहीं ... सपनो में ही खुश रहो ...

ჯહઔહჯ═══■■═══ჯહઔહჯ


हँसते हँसते ये पल बिताएँगे, आज में ही खुश रहो
ज़िन्दगी है छोटी, हर पल में खुश रहो

Friday 5 December, 2008

किसी ने किसी की तरफ़ नही देखा

शहर ने अंधी गली की तरफ़ नही देखा
जिसे तलक थी उसी की तरफ़ नही देखा
तमाम उम्र गुजारी ख़याल में जिसके,
तमाम उम्र उसी की तरफ़ नही देखा
जो आईने से मिला आइना तो झुंझलाया'
किसी ने अपनी कमी की तरफ़ नही देखा,
सफर के बीच ये कैसा बदल गया मंजर,
की फ़िर किसी ने किसी की तरफ़ नही देखा,

Thursday 13 November, 2008

कोई तो होता

कोई तो होता?
मैं जिस के दिल की किताब बनता
मैं जिस की चाहत का खवाब बनता
मैं ठंडे मौसम की लम्बी रातों में
यादें बन कर अजाब बनता**
कोई तो होता जो मेरी ख्वाइश में उठ कर रातों को खूब रोता
दुखो की चादर लपेट कर हजूम दुनिया से दूर होता
मैं रूठ जाता वो मनाता मुझ को चाहे कसूर मेरा होता
कोई तो होता?

शिकायत भी बहुत है

शिकवे भी बहुत है शिकायत भी बहुत है
इस दिल को मगर उनसे मोहब्बत भी बहुत है
आ जाते है मिलने वो तसव्वुर में हमारी
एक शख्स की इतनी सी इनायत भी बहुत है

तन्हा सी जिंदगी

तन्हा सी जिंदगी में तन्हा है हर रास्ता,
दोस्तों यारो से जैसे टूटा हो वास्ता,
सभी हैं साथ पर नजाने किसकी कमी है,
इतनी खुशियों में नजाने कैसी गमी है।
क्यो पतझड़ में सावन का दीदार करता हूँ,
क्यो हर घड़ी सिर्फ़ तेरा इंतज़ार करता हूँ,
तू कौन है कहा है, इस सब से अनजान हूँ,
क्या मेरी तरह , तू भी परेशान है

गुनगुनाते हुए आँचल की हवा दे मुझ को,

गुनगुनाते हुए आँचल की हवा दे मुझ को,
उंगलिया फेर कर बालों में सुला दे मुझ को
जिस तरह फालतू गुलदान परे रहते है
अपने घर के किसी कोने से लगा दे मुझ को
याद कर के मुझे तकलीफ ही होती होगी
एक किस्सा होऊं पुराना सा भुला दे मुझ को
डूबते डूबते आवाज तेरी सुन जाऊं
आखिरी बार तू साहिल आवाज लगा दे मुझको

हमें ख़ुद अपनी मोहब्बत नही मिली

ऐसा नही के हम को मोहब्बत नही मिली
जैसी चाहते थे हम को वो उल्फत नही मिली
मिलने को ज़िन्दगी में कई हमसफ़र मिले
पर उन की तबियत से तबियत नही मिली
चेहरों में दूसरों के तुम्हे ढूँढ़ते रहे
सूरत नही मिली तो कहीं सीरत नही मिली
बहुत देर से आया तू मेरे पास क्या कहूँ
अल्फाज़ ढूँढने की भी मोहलत नही मिली
तुझ को गिला रहा के तवज्जो न दी तुझे
लेकिन हमें ख़ुद अपनी मोहब्बत नही मिली
हर शख्स ज़िन्दगी में बड़ी देर से मिला
कोई भी चीज़ वक्त ज़रूरत नही मिली
हम को तो तेरी आदत अच्छी लगी
अफ़सोस के तुझ से मेरी आदत नही मिली

अपनी किस्मत में कभी वो थी ही नही

ख्वाब टूटे हुए, दिल दुखाते रहे,
देर तक वो हमे याद आते रहे
काट ली आंसुओं में जुदाई की रात,
शेर कहते रहे, गाने गुनगुनाते रहे…
तेरे जलवे पराये हुए मगर गम नही,
ये तस्सल्ली भी अपने लिए कम नही,
हमने तुमसे किया था जो वफ़ा का वादा,
साँस जब तक चली , हम निभाते रहे…
किसको मुजरिम कहें अब करें किससे गिला,
रिश्ता टुटा, न उनकी न मेरी थी रज़ा,
अपनी किस्मत में कभी वो थी ही नही,
ख्वाब पलकों पे जिसके सजाते रहे…

Saturday 8 November, 2008

जख्म

बहुत उदास है एक शख्स तेरे जाने से...
हो सके तू लौट आ किसी बहाने से...
तू लाख खफा सही मगर एक बार तो देख...
कोई टूट गया है तेरे दूर जाने से....
कितनी जल्दी ये मुलाकात गुज़र जाती है.....
प्यास बुझती नही के बरसात गुज़र जाती है...
अपनी यादों से कहदो यूँ न आया करे ......
नींद आती नही और रात गुज़र जाती है।
ये दिल न जाने क्या कर बैठा।
मुझसे पूछे बिना ही फ़ैसला कर बैठा।
इस ज़मीन पर टूटा सितारा भी नही गिरता।
और ये पागल चाँद से दोस्ती कर बैठा।
वो याद आए भुलाते-भुलाते,
दिल के ज़ख्म उभर आए छुपाते छुपाते।
सिखाया था जिसने ग़म में मुस्कुराना,
उसी ने रुला दिया हसातें-हसातें !!

दस्तक

दरवाजे पर हर दस्तक का, जाना पहचाना चेहरा है!
रोज़ बदलती है तारीखें, वक्त मगर यूँ ही ठहरा है!
हर दस्तक है उनकी दस्तक, दिल यूँ ही धोखा खाता है!
जब भी, दरवाजा खुलता है, कोई और नज़र आता है!
जाने वो कब आएगा, जिसको बरसो से आना है!
या, बस यूँ ही रास्ता ताकना, इस जीवन का जुर्माना है!

Sunday 2 November, 2008

क्या चले गए जाने वाले?

मन पूछ रहा है बार-बार, क्या चले गए जाने वाले?
यदि जानाथा तों आयें क्यों, आँगन में आ मुस्कुराये क्यों?
जीवन-संगीत बजा साथी, वीणा के तार हिलाए क्यों?
उलझी तारे बिखरा के अब, क्या चले गए जाने वाले?
हम बैठे रह गए मन-मसोस, मन में संचित कर विरह भार!
वह यादें बन गयी आज मेरे, व्याकुल जीवन का मृदु-आधार;
करके मेरा आँगन सूना-क्या चले गए जाने वाले?

क्या नींद तुम्हे आ जाती है?

रजनी के काले आँचल में, सूनापन सा छा जाता जब!
तारो की आँख मिचौनी में भी, तमका राज्य समाता जब!
मन की पीडाये कसक-कसक कर, आंसू बन छा जाती है!
प्राणों के अंतरतम में भी, सुप्त उमंगें जग आती है!
हम तो हो विह्वल, यही बता दो तुम!
क्या नींद तुम्हे आ जाती है?

Saturday 1 November, 2008

यादें

कुछ क्षण की मुस्काने देकर, वो विरह व्यथा दे चले गए!
उन पीडाओं को सींच सींच कर मैं जी बहलाया करता हूँ!

जिस तट से तेरी नाव गयी, वह तट ही अब है मीत मेरा!
पर, लहरों का मुख चुम-चुम कर, वापिस आ जाता गीत मेरा!
घंटो उस निर्जन में, आशा के महल बनाया करता हूँ!
निस्तब्ध निशा में छेड़ के सरगम मीत बुलाया करता हूँ!

उफनते सागर सा यौवन यह, चहूं ओर बिखर कर जलता है!
घायल चाहों से जडित ह्रदय, अनबुझी आग सा जलता है!
कुछ कहे, अनकहे गीतों को, फ़िर से दुहराया करता हूँ!
सांसों के अनबोले स्वर में, थककर सो जाया करता हूँ!!

जिन विश्वासों के साथ पली, संचित स्मृतिया जीवन की!
वह डोरी जिसके साथ बंधी, सब आशाये पुलकित मन की!
बेदर्द हवा के झोंको से, मैं उन्हें बचाया करता हूँ!
कुछ गढ़-अनगढ़ सपनों में, स्वयं को बिखराया करता हूँ!!

जीने का क्या है, जीते है, सांसों का स्पंदन काफी है!
अवरुद्ध व्यथा से थकित हृदय में, गति का विभ्रम ही काफी है!
सावन की नशीली रातों से , यादों को चुराया करता हूँ!
और घाव हरे टूटे दिल के, बैठा सहलाया करता हूँ!!

Tuesday 21 October, 2008

मत हो उदास

दिन हुआ है तो रात भी होगी, हो मत उदास कभी तो बात भी होगी,

इतने प्यार से दोस्ती की है खुदा की कसम जिंदगी रही तो मुलाकात भी होगी.

कोशिश कीजिए हमें याद करने की लम्हे तो अपने आप ही मिल जायेंगे

तमन्ना कीजिए हमें मिलने की बहाने तो अपने आप ही मिल जायेंगे .

महक दोस्ती की इश्क से कम नहीं होती इश्क से ज़िन्दगी ख़तम नहीं होती

अगर साथ हो ज़िन्दगी में अच्छे दोस्त का तो ज़िन्दगी जन्नत से कम नहीं होती

सितारों के बीच से चुराया है आपको दिल से अपना दोस्त बनाया है आपको

इस दिल का ख्याल रखना क्योंकि इस दिल के कोने में बसाया है आपको.

अपनी ज़िन्दगी में मुझे शरीक समझना कोई गम आये तो करीब समझना

दे देंगे मुस्कराहट आंसुओं के बदले मगर हजारों दोस्तो में अज़ीज़ समझना

Saturday 18 October, 2008

वो हमको तड़पा रहे है

वो कुछ इस तरह से हमको तड़पा रहे है
के आते आते करीब,वो रास्ते से लौट कर जा रहे है
रोकना चाहते है हम उन्हें इसी लिए
किन किन बहानो से उन्हें समझा रहे है
कभी जानेजां, कभी जानेमन, कभी जाने बहार कह कर बुला रहे है
वो कुछ इस तरह से हमे तड़पा रहे है
कभी आ रहे है कभी जा रहे है
कभी हँस रहे है कभी शर्मा रहे है
पहले नाराज़ करके फिर ख़ुद ही मना रहे है
वो कुछ इस तरह से हमको मना रहे है
कभी आँखें दिखा रहे है
कभी ऑंखें चुरा रहे हैं
कभी हक़ जता डाट रहे हैं
फिर उसी पल शरारतो से ऑंखें झुखा रहे है
वो कुछ इस तरह से हमको तड़पा रहे हैं

उनका मस्ती भरी बातें करना
वो मोसम को रंगीन बना रहे हैं
और करते करते बातें खामोश होना देख कर
हम मन ही मन घबरा रहे हैं
वो कुछ इस तरह से हमको तड़पा रहे हैं

प्यार

रेत को हीरे की तरह हाथों में संभाला
पर हथेलिओं की तकदीरों से फिसल गई

बंजर भावनाओं के घोसले को खूबसूरत बनाया था..
पर तेरे प्यार की बारिश में वो सब बह गया

कुछ लम्हों ने इस तरह पकड़ा
की पूरी ज़िन्दगी कुछ शानों में सिमट गई

बन कर मोटी जो आखों से आंसूं भी न बहा पाए तेरी जुदाई में
ऐसा बेजुबान मेरा प्यार तो नहीं, ऐसे खामोश तेरी यादें भी नहीं

तेरे शब्दों की सुंदर दुनिया में कई जीवन मिल गए
तेरे साथ पल भर के लिए जिंदा होने का आभास तो हुआ

कुछ लम्हों के लिए ही सही तेरा साथ मिला
पर तेरे एहसास से ज़िन्दगी मेरे घर से भी गुजर गई…
रेत को हीरे की तरह हाथों में संभाला
पर हथेलिओं की तकदीरों से फिसल गई

बंजर भावनाओं के घोसले को खूबसूरत बनाया था..
पर तेरे प्यार की बारिश में वो सब बह गया

कुछ लम्हों ने इस तरह पकड़ा
की पूरी ज़िन्दगी कुछ शानों में सिमट गई

बन कर मोटी जो आखों से आंसूं भी न भाहा पिये तेरी जुदाई में
ऐसा बेजुबान मेरा प्यार तोह नहीं, ऐसे खामोश तेरी यादें भी नहीं

तेरे शब्दों की सुंदर दुनिया में कई जीवन मिल गए
तेरे साथ पल भर के लिए जिंदा होने का आभास तो हुआ

कुछ लम्हों के लिए ही सही तेरा साथ मिला
पर तेरे एहसास से ज़िन्दगी मेरे घर से भी गुजार गई…

क्या याद हमारी आती है

क्या याद हमारी आती है?

सावन आया बदल घुमड़े, आकुल मन सहसा डोल उठा!
धरती का आँचल भीग गया, जब प्राण पपीहा बोल उठा!
झींगुर की जब पायल खनकी, अम्बर को बिजुरी चीर गई!
इन मस्त फुहारों में साथी, क्या याद हमारी आती है?

भँवरे की बंशी सुन, कलियों ने अलसाई पलके खोली!
मादक सपनो में डूब गयी, तब विरहिन की नजरे भोली!
कोयल कूकी अमराई में, हम कूक उठे बेबस होकर!
आँखे भींगी, प्रिये तुमको भी, क्या याद हमारी आती है?

हर प्यासी धड़कन में छिपकर, निर्मोही, तेरा प्यार पले!
साँसों की सुनी महफिल में, गूंजे अफसाने दर्द भरे!
वीणा की उलझ गयी तारें, चहूँ ओर शोर तूफानों का!
हम तो है विह्वल तुमको भी, क्या याद हमारी आती है?

बिन पिए बहारे बहक रही, कण-कण में मस्ती छायी है!
ऐसे में कोई लेके गागर, इस सुने पनघट पे आयी है!
प्रीतों पर पहरा लगे यहाँ, हर साँस कैद हो जाती है!
जब जग सोए, शबनम रोये, क्या याद हमारी आती है!

मेरी नजर

कौन सा है रास्ता जो यों मुझे बुला रहा?

धुंधला ये स्वप्न मुझे कौन है दिखा रहा?


बदली कई बार मग़र राह अभी मिली नहीं

चलने को जिसपर मेरा मन कुलबुला रहा।


बैठ! थ! यों ही, पर वैसे ना रह सक!

सफ़र कोई और है जो मुझे बुला रहा।


यहाँ-वहाँ, कहीं-कोई, झकझोर सा मुझे गया

कोई है सवाल जो पल-पल मुझे सता रहा।

मेरी कहानी

यह हार एक विराम है
जीवन महासंग्राम है
तिल-तिल मिटूँगा पर दया की भीख मैं लूँगा नहीं।

वरदान माँगूँगा नहीं।।********


क्‍या हार में क्‍या जीत में
किंचित नहीं भयभीत मैं
संधर्ष पथ पर जो मिले यह भी सही वह भी सही।

वरदान माँगूँगा नहीं।। ********

चाहे हृदय को ताप दो
चाहे मुझे अभिशप दो
कुछ भी करो कर्तव्‍य पथ से किंतु भागूँगा नहीं।

वरदान माँगूँगा नहीं!!!

आराम

एक मित्र मिले, बोले, "लाला, तुम किस चक्की का खाते हो?
इस डेढ़ छटांक के राशन में भी तोंद बढ़ाए जाते हो।
क्या रक्खा माँस बढ़ाने में, मनहूस, अक्ल से काम करो।
संक्रान्ति-काल की बेला है, मर मिटो, जगत में नाम करो।"
हम बोले, "रहने दो लेक्चर, पुरुषों को मत बदनाम करो।
इस दौड़-धूप में क्या रक्खा, आराम करो, आराम करो।

आराम ज़िन्दगी की कुंजी, इससे न तपेदिक होती है।
आराम सुधा की एक बूंद, तन का दुबलापन खोती है।
आराम शब्द में 'राम' छिपा जो भव-बंधन को खोता है।
आराम शब्द का ज्ञाता तो विरला ही योगी होता है।
इसलिए तुम्हें समझाता हूँ, मेरे अनुभव से काम करो।
ये जीवन, यौवन क्षणभंगुर, आराम करो, आराम करो।

यदि करना ही कुछ पड़ जाए तो अधिक न तुम उत्पात करो।
अपने घर में बैठे-बैठे बस लंबी-लंबी बात करो।
करने-धरने में क्या रक्खा जो रक्खा बात बनाने में।
जो ओठ हिलाने में रस है, वह कभी न हाथ हिलाने में।
तुम मुझसे पूछो बतलाऊँ, है मज़ा मूर्ख कहलाने में।
जीवन-जागृति में क्या रक्खा जो रक्खा है सो जाने में।

मैं यही सोचकर पास अक्ल के, कम ही जाया करता हूँ।
जो बुद्धिमान जन होते हैं, उनसे कतराया करता हूँ।
दीए जलने के पहले ही घर में आ जाया करता हूँ।
जो मिलता है, खा लेता हूँ, चुपके सो जाया करता हूँ।
मेरी गीता में लिखा हुआ, सच्चे योगी जो होते हैं,
वे कम-से-कम बारह घंटे तो बेफ़िक्री से सोते हैं।

अदवायन खिंची खाट में जो पड़ते ही आनंद आता है।
वह सात स्वर्ग, अपवर्ग, मोक्ष से भी ऊँचा उठ जाता है।
जब 'सुख की नींद' कढ़ा तकिया, इस सर के नीचे आता है,
तो सच कहता हूँ इस सर में, इंजन जैसा लग जाता है।
मैं मेल ट्रेन हो जाता हूँ, बुद्धि भी फक-फक करती है।
भावों का रश हो जाता है, कविता सब उमड़ी पड़ती है।

मैं औरों की तो नहीं, बात पहले अपनी ही लेता हूँ।
मैं पड़ा खाट पर बूटों को ऊँटों की उपमा देता हूँ।
मैं खटरागी हूँ मुझको तो खटिया में गीत फूटते हैं।
छत की कड़ियाँ गिनते-गिनते छंदों के बंध टूटते हैं।
मैं इसीलिए तो कहता हूँ मेरे अनुभव से काम करो।
यह खाट बिछा लो आँगन में, लेटो, बैठो, आराम करो।

Thursday 16 October, 2008

अपना दर्द

अनदेखे सुख की आशा में, यौवन की दुपहरी बीत गयी !

राशन में प्यार मिला हमको, अधभरी गगरिया रीत गयी!!

छाया के भरोसे जी-जीकर , पल-पल की गिनती कर बैठे

अपने ही हाथों किस्मत पर, सब छोड़ किनारा कर बैठे............

जीवन के इस बीहड़ पथ पर चलते-चलते पग हार गए
बिखरे मोती अरमानो के अपने ही हमको मार गए...........

मंजिल ही नजर नहीं आती, और छोड़ न मिले किनारों का

अब दर्द मिला जीवन भर का, धोखा था चाँद सितारों का...............

Sunday 12 October, 2008

दीवारों से मिलकर रोना अच्छा लगता है

दीवारों से मिलकर रोना अच्छा लगता है हम भी पागल हो जायेंगे ऐसा लगता है

दुनिया भर की यादें हमसे मिलने आती है, शाम ढले इस सुने घर में मेला लगता है

कितने दिनों के प्यासे होंगे यारो सोचो तो, शबनम का कतरा जिनको दरिया लगता है

किसको कैसर पत्थर मारू कौन पराया है, शीशमहल में एक एक चेहरा अपना लगता है

मैंने तो चाँद सितारों की तमन्ना की थी

मैंने चाँद और सितारों की तमन्ना की थी
मुझको रातों की स्याही के सिवा कुछ न मिला

मैं वो नगमा हूँ जिसे प्यार की महफिल न मिली
वो मुसाफिर हूँ जिसे कोई भी मंजिल न मिली
जख्म पाए है बहारों की तमन्ना की थी

किसी गेसू के सिवा आँचल का सहारा भी नहीं
रास्तें में कोई धुंधला सा सितारा भी नहीं
मेरी नजरों ने नजारों की तमन्ना की थी

मेरी राहों से जुदा हो गयी राहें उनकी
आज बदली नज़र आती है निगाहें उनकी
जिनसे इस दिल ने सहारों की तम्मना की थी

प्यार माँगा तो सिसकतें हुए अरमान मिले
चैन चाहा तो उमड़ते हुए तूफ़ान मिले
डूबते दिल ने किनारों की तमन्ना की थी

Thursday 9 October, 2008

हमारी सांसो में

हमारी सांसो में आज तक वो हिना की खुशबू महक रही है
लबों पे नगमे मचल रहे हैं, नज़र से मस्ती छलक रहीं है

कभी जो थे प्यार की जमानत, वों हाथ है गैर की अमानत
जो कसमे खाते थे चाहतो की, उन्ही की नीयत बदल रहीं है

किसी से कोई गिला नहीं है, नसीब में ही वफ़ा नहीं है
जहाँ कहीं था हिना को खिलना, हिना वही पे महक रही है

वों जिनकी खातिर ग़ज़ल कहे थे वों जिनकी खातिर लिखे थे नगमे
उन्ही के आगे सवाल बन के ग़ज़ल की झांझर झलक रही है

Wednesday 8 October, 2008

एक पगली सी लड़की

अमावसकी काली रातों में दिल का दरवाजा खुलता है,
जब दर्द की प्याली रातों में गम आँसू के संग घुलता है!
जब पिछवाडे के कमरे में हम निपट अकेले होते है,
जब घडिया टिक-टिक चलती है, सब सोते है, हम रोते है,
जब बार-बार दोहराने से सारी यादें चुक जाती है!
जब उंच-नीच समझाने में माथे की नस दुख जाती है,
तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है!!

जब पोथे खाली होते है जब हर्फ़ सवाली होते है
जब गजले रास नही आती अफसाने गाली होती है
जब बासी फीकी धुप समेटे दिन जल्दी ढल जाता है
जब सूरज का लस्कर छत से गलियों में देर से जाता है
जब जल्दी घर जाने की इच्छा मन ही मन घुट जाती है
जब कॉलेज से घर लाने वाली पहली बस छूट जाती है
जब बेमन से खाना खाने पर माँ गुस्सा हो जाती है
जब लाख मना करने पर भी पारो पढ़ने जाती है,
जब अपना हर मनचाहा काम कोई लाचारी लगता है,
तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है।

जब कमरे में सन्नाटे की आवाज़ सुनाई देती है,
जब दर्पण में आंखों के नीचे झाई दिखाई देती है,
जब बड़की भाभी कहती हैं, कुछ सेहत का भी ध्यान करो,
क्या लिखते हो लल्ला दिन भर, कुछ सपनों का भी सम्मान करो,
जब बाबा वाली बैठक में कुछ रिश्तेवाले आते हैं,
जब बाबा हमें बुलाते है,हम जाते हैं,घबराते हैं,
जब साड़ी पहने एक लड़की का फोटो लाया जाता है,
जब भाभी हमें मनाती हैं, फोटो दिखलाया जाता है,
जब सारे घर का समझाना हम को फनकारी लगता है,
तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है।


जब दूर दराज इलाको से ख़त लिखकर लोग हमको बुलाते है!
जब हमको गजलो गीतों का वो राजकुमार बताते है!!
जब हम ट्रेनों से जाते है जब लोग हमे ले जाते है !
जब हम महफिल की शान बने प्रीत का गीत सुनते है !
कुछ आँखे धीरज खोती है कुछ आँखे चुप चुप रोटी है!
कुछ आँखे हम पर टिकी टिकी गागर सी खाली होती है
जब सपने आन्झे हुए लड़किया पता मांगने आती है
जब नर्म हथेली से कागज पर औटोग्राफ कराती है
जब यह सारा उल्लास हमे ख़ुद से मक्कारी लगता है !
तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है।

दीदी कहती हैं उस पगली लडकी की कुछ औकात नहीं,
उसके दिलमें भैया तेरे जैसे प्यारे जज़्बात नहीं,
वो पगली लड़की मेरी खातिर नौ दिन भूखी रहती है
चुपचुप सारे व्रत करती है, पर मुझसे कभी ना कहती है,
जो पगली लडकी कहती है, मैं प्यार तुझी से करती हूँ,
लेकिन मैं हूँ मजबूर बहुत, अम्मा-बाबा से डरती हूँ,
उस पगली लड़की पर अपना कुछ भी अधिकार नहीं बाबा,
ये कथा-कहानी-किस्से हैं, कुछभी तो सार नहीं बाबा,
बस उस पगली लडकी के संग जीना फुलवारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है

कोई दीवाना कहता है

कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है!
मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है!!
मैं तुझसे दूर कैसा हूँ तू मुझसे दूर कैसी है!
ये तेरा दिल समझता या मेरा दिल समझता है!!

मोहब्बत एक एहसाँसों की पावन सी कहानी है!
कभी कबिरा था दीवाना कभी मीरा दीवानी है!!
यहाँ सब लोग कहते है मेरी आँखों में आंसू है!
जो तू समझे तो मोती है जो न समझे तो पानी है!!

समंदर पीर का अन्दर है लेकिन रो नहीं सकता!
यह आँसू प्यार का मोती है इसको खो नहीं सकता!!
मेरी चाहत को तू दुल्हन बना लेना मगर सुनले!
मेरी चाहत को तू अपना बना लेना मगर सुनले!
जो मेरा हो नही पाया वो तेरा हो नही सकता!!

भ्रमर कोई कुमुदनी पर मचल बैठा तो हंगामा!
हमारे दिल में कोई ख्वाब पल बैठा तो हंगामा!!
अभी तक डूब कर सुनते थे सब किस्सा मोहब्बत का!
मैं किस्से को हकीकत में बदल बैठा तो हंगामा!!

बहुत टूटा बहुत बिखरा थपेडे सह नहीं पाया!
हवाओं के इशारे पर मगर मैं बह नहीं पाया!!
अधूरा अनसुना ही रह गया यह प्यार का किस्सा!
कभी तू सुन नहीं पायी कभी मैं कह नहीं पाया!!

स्वंय से दूर हो तुम भी स्वंय से दूर है हम भी !
बहुत मशहूर हो तुम भी बहुत मशहूर है हम भी !!
बड़े मगरूर हो तुम भी बड़े मगरूर हो हम भी !
अतः मजबूर हो तुम भी बड़े मजबूर है हम भी !!