Tuesday 21 October, 2008

मत हो उदास

दिन हुआ है तो रात भी होगी, हो मत उदास कभी तो बात भी होगी,

इतने प्यार से दोस्ती की है खुदा की कसम जिंदगी रही तो मुलाकात भी होगी.

कोशिश कीजिए हमें याद करने की लम्हे तो अपने आप ही मिल जायेंगे

तमन्ना कीजिए हमें मिलने की बहाने तो अपने आप ही मिल जायेंगे .

महक दोस्ती की इश्क से कम नहीं होती इश्क से ज़िन्दगी ख़तम नहीं होती

अगर साथ हो ज़िन्दगी में अच्छे दोस्त का तो ज़िन्दगी जन्नत से कम नहीं होती

सितारों के बीच से चुराया है आपको दिल से अपना दोस्त बनाया है आपको

इस दिल का ख्याल रखना क्योंकि इस दिल के कोने में बसाया है आपको.

अपनी ज़िन्दगी में मुझे शरीक समझना कोई गम आये तो करीब समझना

दे देंगे मुस्कराहट आंसुओं के बदले मगर हजारों दोस्तो में अज़ीज़ समझना

Saturday 18 October, 2008

वो हमको तड़पा रहे है

वो कुछ इस तरह से हमको तड़पा रहे है
के आते आते करीब,वो रास्ते से लौट कर जा रहे है
रोकना चाहते है हम उन्हें इसी लिए
किन किन बहानो से उन्हें समझा रहे है
कभी जानेजां, कभी जानेमन, कभी जाने बहार कह कर बुला रहे है
वो कुछ इस तरह से हमे तड़पा रहे है
कभी आ रहे है कभी जा रहे है
कभी हँस रहे है कभी शर्मा रहे है
पहले नाराज़ करके फिर ख़ुद ही मना रहे है
वो कुछ इस तरह से हमको मना रहे है
कभी आँखें दिखा रहे है
कभी ऑंखें चुरा रहे हैं
कभी हक़ जता डाट रहे हैं
फिर उसी पल शरारतो से ऑंखें झुखा रहे है
वो कुछ इस तरह से हमको तड़पा रहे हैं

उनका मस्ती भरी बातें करना
वो मोसम को रंगीन बना रहे हैं
और करते करते बातें खामोश होना देख कर
हम मन ही मन घबरा रहे हैं
वो कुछ इस तरह से हमको तड़पा रहे हैं

प्यार

रेत को हीरे की तरह हाथों में संभाला
पर हथेलिओं की तकदीरों से फिसल गई

बंजर भावनाओं के घोसले को खूबसूरत बनाया था..
पर तेरे प्यार की बारिश में वो सब बह गया

कुछ लम्हों ने इस तरह पकड़ा
की पूरी ज़िन्दगी कुछ शानों में सिमट गई

बन कर मोटी जो आखों से आंसूं भी न बहा पाए तेरी जुदाई में
ऐसा बेजुबान मेरा प्यार तो नहीं, ऐसे खामोश तेरी यादें भी नहीं

तेरे शब्दों की सुंदर दुनिया में कई जीवन मिल गए
तेरे साथ पल भर के लिए जिंदा होने का आभास तो हुआ

कुछ लम्हों के लिए ही सही तेरा साथ मिला
पर तेरे एहसास से ज़िन्दगी मेरे घर से भी गुजर गई…
रेत को हीरे की तरह हाथों में संभाला
पर हथेलिओं की तकदीरों से फिसल गई

बंजर भावनाओं के घोसले को खूबसूरत बनाया था..
पर तेरे प्यार की बारिश में वो सब बह गया

कुछ लम्हों ने इस तरह पकड़ा
की पूरी ज़िन्दगी कुछ शानों में सिमट गई

बन कर मोटी जो आखों से आंसूं भी न भाहा पिये तेरी जुदाई में
ऐसा बेजुबान मेरा प्यार तोह नहीं, ऐसे खामोश तेरी यादें भी नहीं

तेरे शब्दों की सुंदर दुनिया में कई जीवन मिल गए
तेरे साथ पल भर के लिए जिंदा होने का आभास तो हुआ

कुछ लम्हों के लिए ही सही तेरा साथ मिला
पर तेरे एहसास से ज़िन्दगी मेरे घर से भी गुजार गई…

क्या याद हमारी आती है

क्या याद हमारी आती है?

सावन आया बदल घुमड़े, आकुल मन सहसा डोल उठा!
धरती का आँचल भीग गया, जब प्राण पपीहा बोल उठा!
झींगुर की जब पायल खनकी, अम्बर को बिजुरी चीर गई!
इन मस्त फुहारों में साथी, क्या याद हमारी आती है?

भँवरे की बंशी सुन, कलियों ने अलसाई पलके खोली!
मादक सपनो में डूब गयी, तब विरहिन की नजरे भोली!
कोयल कूकी अमराई में, हम कूक उठे बेबस होकर!
आँखे भींगी, प्रिये तुमको भी, क्या याद हमारी आती है?

हर प्यासी धड़कन में छिपकर, निर्मोही, तेरा प्यार पले!
साँसों की सुनी महफिल में, गूंजे अफसाने दर्द भरे!
वीणा की उलझ गयी तारें, चहूँ ओर शोर तूफानों का!
हम तो है विह्वल तुमको भी, क्या याद हमारी आती है?

बिन पिए बहारे बहक रही, कण-कण में मस्ती छायी है!
ऐसे में कोई लेके गागर, इस सुने पनघट पे आयी है!
प्रीतों पर पहरा लगे यहाँ, हर साँस कैद हो जाती है!
जब जग सोए, शबनम रोये, क्या याद हमारी आती है!

मेरी नजर

कौन सा है रास्ता जो यों मुझे बुला रहा?

धुंधला ये स्वप्न मुझे कौन है दिखा रहा?


बदली कई बार मग़र राह अभी मिली नहीं

चलने को जिसपर मेरा मन कुलबुला रहा।


बैठ! थ! यों ही, पर वैसे ना रह सक!

सफ़र कोई और है जो मुझे बुला रहा।


यहाँ-वहाँ, कहीं-कोई, झकझोर सा मुझे गया

कोई है सवाल जो पल-पल मुझे सता रहा।

मेरी कहानी

यह हार एक विराम है
जीवन महासंग्राम है
तिल-तिल मिटूँगा पर दया की भीख मैं लूँगा नहीं।

वरदान माँगूँगा नहीं।।********


क्‍या हार में क्‍या जीत में
किंचित नहीं भयभीत मैं
संधर्ष पथ पर जो मिले यह भी सही वह भी सही।

वरदान माँगूँगा नहीं।। ********

चाहे हृदय को ताप दो
चाहे मुझे अभिशप दो
कुछ भी करो कर्तव्‍य पथ से किंतु भागूँगा नहीं।

वरदान माँगूँगा नहीं!!!

आराम

एक मित्र मिले, बोले, "लाला, तुम किस चक्की का खाते हो?
इस डेढ़ छटांक के राशन में भी तोंद बढ़ाए जाते हो।
क्या रक्खा माँस बढ़ाने में, मनहूस, अक्ल से काम करो।
संक्रान्ति-काल की बेला है, मर मिटो, जगत में नाम करो।"
हम बोले, "रहने दो लेक्चर, पुरुषों को मत बदनाम करो।
इस दौड़-धूप में क्या रक्खा, आराम करो, आराम करो।

आराम ज़िन्दगी की कुंजी, इससे न तपेदिक होती है।
आराम सुधा की एक बूंद, तन का दुबलापन खोती है।
आराम शब्द में 'राम' छिपा जो भव-बंधन को खोता है।
आराम शब्द का ज्ञाता तो विरला ही योगी होता है।
इसलिए तुम्हें समझाता हूँ, मेरे अनुभव से काम करो।
ये जीवन, यौवन क्षणभंगुर, आराम करो, आराम करो।

यदि करना ही कुछ पड़ जाए तो अधिक न तुम उत्पात करो।
अपने घर में बैठे-बैठे बस लंबी-लंबी बात करो।
करने-धरने में क्या रक्खा जो रक्खा बात बनाने में।
जो ओठ हिलाने में रस है, वह कभी न हाथ हिलाने में।
तुम मुझसे पूछो बतलाऊँ, है मज़ा मूर्ख कहलाने में।
जीवन-जागृति में क्या रक्खा जो रक्खा है सो जाने में।

मैं यही सोचकर पास अक्ल के, कम ही जाया करता हूँ।
जो बुद्धिमान जन होते हैं, उनसे कतराया करता हूँ।
दीए जलने के पहले ही घर में आ जाया करता हूँ।
जो मिलता है, खा लेता हूँ, चुपके सो जाया करता हूँ।
मेरी गीता में लिखा हुआ, सच्चे योगी जो होते हैं,
वे कम-से-कम बारह घंटे तो बेफ़िक्री से सोते हैं।

अदवायन खिंची खाट में जो पड़ते ही आनंद आता है।
वह सात स्वर्ग, अपवर्ग, मोक्ष से भी ऊँचा उठ जाता है।
जब 'सुख की नींद' कढ़ा तकिया, इस सर के नीचे आता है,
तो सच कहता हूँ इस सर में, इंजन जैसा लग जाता है।
मैं मेल ट्रेन हो जाता हूँ, बुद्धि भी फक-फक करती है।
भावों का रश हो जाता है, कविता सब उमड़ी पड़ती है।

मैं औरों की तो नहीं, बात पहले अपनी ही लेता हूँ।
मैं पड़ा खाट पर बूटों को ऊँटों की उपमा देता हूँ।
मैं खटरागी हूँ मुझको तो खटिया में गीत फूटते हैं।
छत की कड़ियाँ गिनते-गिनते छंदों के बंध टूटते हैं।
मैं इसीलिए तो कहता हूँ मेरे अनुभव से काम करो।
यह खाट बिछा लो आँगन में, लेटो, बैठो, आराम करो।

Thursday 16 October, 2008

अपना दर्द

अनदेखे सुख की आशा में, यौवन की दुपहरी बीत गयी !

राशन में प्यार मिला हमको, अधभरी गगरिया रीत गयी!!

छाया के भरोसे जी-जीकर , पल-पल की गिनती कर बैठे

अपने ही हाथों किस्मत पर, सब छोड़ किनारा कर बैठे............

जीवन के इस बीहड़ पथ पर चलते-चलते पग हार गए
बिखरे मोती अरमानो के अपने ही हमको मार गए...........

मंजिल ही नजर नहीं आती, और छोड़ न मिले किनारों का

अब दर्द मिला जीवन भर का, धोखा था चाँद सितारों का...............

Sunday 12 October, 2008

दीवारों से मिलकर रोना अच्छा लगता है

दीवारों से मिलकर रोना अच्छा लगता है हम भी पागल हो जायेंगे ऐसा लगता है

दुनिया भर की यादें हमसे मिलने आती है, शाम ढले इस सुने घर में मेला लगता है

कितने दिनों के प्यासे होंगे यारो सोचो तो, शबनम का कतरा जिनको दरिया लगता है

किसको कैसर पत्थर मारू कौन पराया है, शीशमहल में एक एक चेहरा अपना लगता है

मैंने तो चाँद सितारों की तमन्ना की थी

मैंने चाँद और सितारों की तमन्ना की थी
मुझको रातों की स्याही के सिवा कुछ न मिला

मैं वो नगमा हूँ जिसे प्यार की महफिल न मिली
वो मुसाफिर हूँ जिसे कोई भी मंजिल न मिली
जख्म पाए है बहारों की तमन्ना की थी

किसी गेसू के सिवा आँचल का सहारा भी नहीं
रास्तें में कोई धुंधला सा सितारा भी नहीं
मेरी नजरों ने नजारों की तमन्ना की थी

मेरी राहों से जुदा हो गयी राहें उनकी
आज बदली नज़र आती है निगाहें उनकी
जिनसे इस दिल ने सहारों की तम्मना की थी

प्यार माँगा तो सिसकतें हुए अरमान मिले
चैन चाहा तो उमड़ते हुए तूफ़ान मिले
डूबते दिल ने किनारों की तमन्ना की थी

Thursday 9 October, 2008

हमारी सांसो में

हमारी सांसो में आज तक वो हिना की खुशबू महक रही है
लबों पे नगमे मचल रहे हैं, नज़र से मस्ती छलक रहीं है

कभी जो थे प्यार की जमानत, वों हाथ है गैर की अमानत
जो कसमे खाते थे चाहतो की, उन्ही की नीयत बदल रहीं है

किसी से कोई गिला नहीं है, नसीब में ही वफ़ा नहीं है
जहाँ कहीं था हिना को खिलना, हिना वही पे महक रही है

वों जिनकी खातिर ग़ज़ल कहे थे वों जिनकी खातिर लिखे थे नगमे
उन्ही के आगे सवाल बन के ग़ज़ल की झांझर झलक रही है

Wednesday 8 October, 2008

एक पगली सी लड़की

अमावसकी काली रातों में दिल का दरवाजा खुलता है,
जब दर्द की प्याली रातों में गम आँसू के संग घुलता है!
जब पिछवाडे के कमरे में हम निपट अकेले होते है,
जब घडिया टिक-टिक चलती है, सब सोते है, हम रोते है,
जब बार-बार दोहराने से सारी यादें चुक जाती है!
जब उंच-नीच समझाने में माथे की नस दुख जाती है,
तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है!!

जब पोथे खाली होते है जब हर्फ़ सवाली होते है
जब गजले रास नही आती अफसाने गाली होती है
जब बासी फीकी धुप समेटे दिन जल्दी ढल जाता है
जब सूरज का लस्कर छत से गलियों में देर से जाता है
जब जल्दी घर जाने की इच्छा मन ही मन घुट जाती है
जब कॉलेज से घर लाने वाली पहली बस छूट जाती है
जब बेमन से खाना खाने पर माँ गुस्सा हो जाती है
जब लाख मना करने पर भी पारो पढ़ने जाती है,
जब अपना हर मनचाहा काम कोई लाचारी लगता है,
तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है।

जब कमरे में सन्नाटे की आवाज़ सुनाई देती है,
जब दर्पण में आंखों के नीचे झाई दिखाई देती है,
जब बड़की भाभी कहती हैं, कुछ सेहत का भी ध्यान करो,
क्या लिखते हो लल्ला दिन भर, कुछ सपनों का भी सम्मान करो,
जब बाबा वाली बैठक में कुछ रिश्तेवाले आते हैं,
जब बाबा हमें बुलाते है,हम जाते हैं,घबराते हैं,
जब साड़ी पहने एक लड़की का फोटो लाया जाता है,
जब भाभी हमें मनाती हैं, फोटो दिखलाया जाता है,
जब सारे घर का समझाना हम को फनकारी लगता है,
तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है।


जब दूर दराज इलाको से ख़त लिखकर लोग हमको बुलाते है!
जब हमको गजलो गीतों का वो राजकुमार बताते है!!
जब हम ट्रेनों से जाते है जब लोग हमे ले जाते है !
जब हम महफिल की शान बने प्रीत का गीत सुनते है !
कुछ आँखे धीरज खोती है कुछ आँखे चुप चुप रोटी है!
कुछ आँखे हम पर टिकी टिकी गागर सी खाली होती है
जब सपने आन्झे हुए लड़किया पता मांगने आती है
जब नर्म हथेली से कागज पर औटोग्राफ कराती है
जब यह सारा उल्लास हमे ख़ुद से मक्कारी लगता है !
तब एक पगली लड़की के बिन जीना गद्दारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है।

दीदी कहती हैं उस पगली लडकी की कुछ औकात नहीं,
उसके दिलमें भैया तेरे जैसे प्यारे जज़्बात नहीं,
वो पगली लड़की मेरी खातिर नौ दिन भूखी रहती है
चुपचुप सारे व्रत करती है, पर मुझसे कभी ना कहती है,
जो पगली लडकी कहती है, मैं प्यार तुझी से करती हूँ,
लेकिन मैं हूँ मजबूर बहुत, अम्मा-बाबा से डरती हूँ,
उस पगली लड़की पर अपना कुछ भी अधिकार नहीं बाबा,
ये कथा-कहानी-किस्से हैं, कुछभी तो सार नहीं बाबा,
बस उस पगली लडकी के संग जीना फुलवारी लगता है,
और उस पगली लड़की के बिन मरना भी भारी लगता है

कोई दीवाना कहता है

कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है!
मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है!!
मैं तुझसे दूर कैसा हूँ तू मुझसे दूर कैसी है!
ये तेरा दिल समझता या मेरा दिल समझता है!!

मोहब्बत एक एहसाँसों की पावन सी कहानी है!
कभी कबिरा था दीवाना कभी मीरा दीवानी है!!
यहाँ सब लोग कहते है मेरी आँखों में आंसू है!
जो तू समझे तो मोती है जो न समझे तो पानी है!!

समंदर पीर का अन्दर है लेकिन रो नहीं सकता!
यह आँसू प्यार का मोती है इसको खो नहीं सकता!!
मेरी चाहत को तू दुल्हन बना लेना मगर सुनले!
मेरी चाहत को तू अपना बना लेना मगर सुनले!
जो मेरा हो नही पाया वो तेरा हो नही सकता!!

भ्रमर कोई कुमुदनी पर मचल बैठा तो हंगामा!
हमारे दिल में कोई ख्वाब पल बैठा तो हंगामा!!
अभी तक डूब कर सुनते थे सब किस्सा मोहब्बत का!
मैं किस्से को हकीकत में बदल बैठा तो हंगामा!!

बहुत टूटा बहुत बिखरा थपेडे सह नहीं पाया!
हवाओं के इशारे पर मगर मैं बह नहीं पाया!!
अधूरा अनसुना ही रह गया यह प्यार का किस्सा!
कभी तू सुन नहीं पायी कभी मैं कह नहीं पाया!!

स्वंय से दूर हो तुम भी स्वंय से दूर है हम भी !
बहुत मशहूर हो तुम भी बहुत मशहूर है हम भी !!
बड़े मगरूर हो तुम भी बड़े मगरूर हो हम भी !
अतः मजबूर हो तुम भी बड़े मजबूर है हम भी !!