Thursday 17 December, 2009

'दिल की नाज़ुक रगे टूटती है
याद इतना भी कोई ना आए
रह गई जिंदगी बोझ बन कर
बोझ दिल मे उठाये उठाए




जब से चला हूँ मंजिल पे नज़र है
मील का पत्थर नही देखा//
अचानक पहुंचूंगा तो चौंक पड़ेंगे सब
मैंने बरसों से अपना घर नही देखा//
फूलों की सेज मुझे विरासत में नही मिली//
आपने मेरा काँटों भरा बिस्तर नही देखा