Thursday 25 December, 2008

कुछ तो था कुछ तो है


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122008

कुछ तो था कुछ तो है
तेरे-मेरे बीच सजनी
वरना तुम यहाँ न आती
वरना यादें तेरी न होती

यूँ बरस गुज़रते हैं
तेरे लिए तड़पते हैं
तन्हा-तन्हा रात-दिन
तेरे लिए तुम बिन

कुछ तो था कुछ तो है
तेरे-मेरे बीच सजनी…

तुमको पाना है मुझे
मुझको अपनाना है तुझे
ग़म ख़ुशी बन जायेगा
दोनों को क़रीब लायेगा

वरना तुम यहाँ न आती
वरना यादें तेरी न होती…

ख़ाब सच हो जायेंगे
हम-तुम मिल जायेंगे
प्यार होगा दरम्याँ
तेरी आँखों में मेरा जहाँ

कुछ तो था कुछ तो है
तेरे-मेरे बीच सजनी…

यह मौसम भी तुम हो


यह मौसम भी तुम हो,
यह सावन भी तुम हो,
तुम हो… मेरे लिए…
मेरे सनम भी तुम हो
तुम नहीं होते’ तो तुम्हारा एहसास होता है
कोई जगता है रातों में, ख़ाबों के बीज बोता है
यह बिजली भी तुम हो,
यह बदली भी तुम हो,
तुम बूँदों में बरसती हो…
यह रिमझम भी तुम हो
गीले मन को बहुत सुखाया, मगर सूखा नहीं
मन है उदास तेरे लिए, मगर रूखा नहीं
यह अगन भी तुम हो,
यह लगन भी तुम हो,
तुम हो मन-दरपन…
मेरा दरपन भी तुम हो
कितनी बार देखा है, साहिलों पर खड़े हुए
तुम आ रही हो, मुझको ढूँढ़ते-पुकारते हुए
यह जीवन भी तुम हो,
यह धड़कन भी तुम हो,
तुमसे है मेरा यौवन…
मेरा यौवन भी तुम हो
इश्क़ ने ढूँढ़ा तुझे, प्यार ने छूना चाहा तुझे
मैं तेरा प्यार हूँ, आवारा न समझ मुझे
यह मौसम भी तुम हो,
यह सावन भी तुम हो,
तुम हो… मेरे लिए…
मेरे सनम भी तुम हो

तेरे चेहरे पर अपनी नज़र ढूँढ़ते हैं


हर गली हर कूचा दर-ब-दर ढूँढ़ते हैं
हम अपनी दुआ में असर ढूँढ़ते हैं

तुम देखकर हँसते हो मुझे और हम
तेरे चेहरे पर अपनी नज़र ढूँढ़ते हैं

कौन दूसरा होगा हम-सा सितम-परस्त
हम अपना-सा कोई जिगर ढूँढ़ते हैं

जो राह मंज़िल तक पँहुचती होगी
तेरी चाहत में ऐसी रहगुज़र ढूँढ़ते हैं

धूप छुप गयी है कोहरे से भरी वादियों में
और हम हैं कि तेरा नगर ढूँढ़ते हैं

तुमने कहा नहीं कि कब आओगे तुम
हम तुझे अपनी राह में मगर ढूँढ़ते हैं

Sunday 14 December, 2008

पत्थर पे पत्र

हम भी देखे
तुझे
कैसी हरियाली
तेरे आँचल में
सुना बहुत
मौका मिला
देखेंगे हम

सूना शहर
हर शाम को
सपनों में, पर
दो मुझे आँख
हाथ औ, दिल
मैं लिख सकूँ
पत्थर पे पत्र
तेरे नाम

हम भी देखें
सर्प सी
पगदंदिया
और याद आ जाए हमें
जीवन की राह

शायद सुनें हम कूक
तो भूलें
हम आह, शायद
दिन में हो रात
सूरज या चाँद?
सोचेंगे दाल के
हम पैर झरने में
किसी निस्तेज

हम भी देखें
चढ़ के किसी पहाड़ पे
गहरी घटी
और सहम मर
हम कुछ और
सरक जाए
तेरे करीब

कुछ ख्वाब बुनें
हम भी देखें
कोई आवारा बादल
लुप्त सा होता हुआ
डाली में फंसकर
जो लोटता

जा रहा
अपनत्व अपना
थोड़ा रोकर
और, थोड़ा सा
विहंसकर
हम भी देखें
पलकों के तले
बिखर जाना

यूँ ही कुछ
दूर तक
पत्तो की मानिंद
बन के हवा
हम भी कुछ
दूर बहे

पत्थर बनके कुछ चोट तेरी
हम भी सहें
नदीं के बीच पड़े रेत से
कुछ धुप गहें
मगर मैं भूल

गया साँस आखिरी है
मेरी, मैं तो बस
जाल में ही रह
गया हूँ
जो बुना था
मैंने अपने तार से
मुझको है संतोष

की एक
सूरज की
किरण
आ रही है
सामने
दरार से !

Saturday 13 December, 2008

हम

मैं और गम
जब हम हुए
वो मोगरा हरसिंगार सी
तुम्हारी खुशबू
खिलते कमल सी हंसी
सुबह की ओंस में
डूब से नम हुए
मैं और तुम
जब हम हुए
पीपल के पत्तों पर मेंहदी
जैसे तुम्हारे हाथ
चेरी के रंग जैसे होंठ
पछवा हवा से साँसें
फासलें कितने कम हुए
मैं और तुम
जब हम हुए
उंगलिया छुई-मुई सी
लौट लौट गयी हथेलियों में
पलकों के घूंघट में बंद
रही तुम्हारी चाहत
फ़िर हम ही तो बेशरम हुए
मैं और तुम
जब हम हुए
मानसूनी बादलों सी जुल्फें
दांत बिजली की चमक
बातें सावनी रिमझिम
तुम हमारी इबादत
हमारे धरम हुए
मैं और तुम
जब हम हुए

बहुत मुश्किल है

मेरे प्यार को तुम
महसूस नहीं कर सकते
आसानी से
क्योकि मैं
सूखी घास नही हूँ
जिसकी गर्मी
पाने के लिए
दो पत्थरों
रगड़ना ही काफी हो
मैं तो
बुझे से दिखने वाले
अंगारों का ढेर हूँ
जो सहर तक
आग संभाल
सकते है
जानों की जो राख
ओढ़ लेते है
वो जल्दी राख नहीं होते

प्रार्थना

ऐसा नही है तेरे दिए हम हर दुःख सह सकते है
पर तू है मालिक दुनिया का क्या तुझको कह सकते है
जिसके लिए हम जिन्दा थे रहता था जो इस दिल में
अपनी हिम्मत देखो उस बिन भी हम रह सकते है
तुझसे डरते थे हम हरदम तेरा गुन गाते थे
आंसू कुछ कम कर ले भगवन हम अब बह सकते है
तूफानों के दौर बिजलियों के आघात को कम कर
रेत बचा है दीवार में ये घर ढह सकते है
तेरी दया किहमने कमी वैसे महसूस नहीं की
पर दर्द के ऐसे तीखे वारो को क्या कह सकते है

Sunday 7 December, 2008

तेरे ख्यालो से

तेरे खयालो से महकी सी मेरी तन्हाई है
मुझे हर आहट पे लगे शायद मिलने तू आयी है


है ये लहराती ठंडी हवा या आँचल उड़ता तेरा
खुशबु तेरी हर सूँ छाई है ....................

अय हँसी
तू ही मेरी साँसों में है घुली तू ही मेरी आंखों में है बसी मेहरून महजबीं
सच तो ये है के देखू कही लगता है मुझको तू है वही
रंग है जितने तू ही लाई है ..............................

कहानी

फिर एक कहानी सी दोहराई जाए है
नींद इन आंखों से चुराई जाए है
हमे मालूम है इसका भी अंत दर्द होना है
क्यूँ एक खुशी दिल के करीब लाई जाए है
मैं हूँ शोलो का दीवाना तपिश से प्यार है मुझको
ए शबनम ठहर जा आंखों में नमी आए जाए है
चंद अशआर, कुछ आंसू धड़कता हुआ एक दिल
मुद्दतो बाद ए दौलत कमाई जाए है
जाऊं कहाँ इस गली में पशोपेश में हूँ अनिल
कभी जनाजा जाए है कभी शहनाई जाए है

Saturday 6 December, 2008

कटी पतंग

अब जिंदगी में तल्खियों का रंग ही आए
कलम को दर्जे गम मरने का कुछ ढंग ही आए

इस कदर मासूमियत किस काम की है दोस्त
करीब जब भी आए दूरियों के संग ही आए

खुदा जाने ये किसने लिख दिया छत के नसीब में
जब आए तो फ़कत एक कटी पतंग ही आए

करें चर्चा क्या उसकी अंदाजे बयानी का
जिसकी हँसी के सामने जलतरंग ही आए

एक तरफ़ फ़र्ज़ है रोज़गार है प्यार है एक ओर
अब इस कशमकश से हम अनिल तंग ही आए

क्या चाँद मेरा है

चाँद को देखते हुए मैंने सोचा
क्या ये चाँद मेरा है
पर वो चाँद
जो किसी सूरज की रौशनी से इतरा रहा
उसे क्या मालूम
कोई दूर खड़ा
एक कोने से उसे निहार रहा
पर क्या वह उसे बता सकेगा
तुम्हारी चाँदनी मेरे अन्दर मे उजाला कर रही है
मुझे जीने का सहारा दे रही है
वह अंधेरे कोने में खड़ा हो के यह सोच रहा
क्या चाँद यह समझ सकेगा
कोई एक अपने अन्दर असीम उत्साह लिए
यह सोच रहा की
क्या यह चाँद मेरा होगा
लेकिन
क्या वह उजाला सह सकेगा
शायद नही
उसे चाँद चाहिए
लेकिन वह अपने अंदर के अंधेरे से डरता है
शायद यही अँधेरा उसकी नियति है
वह सूरज से लड़ सकता है
पर
चाँद की चाँदनी उसे जला रही है
वह चाँद के पास नही जाता
शायद उसे डर है
उसके मन मे एक सवाल है
क्या चाँद उसे अपना अँधेरा भी देगा
या वह कुछ पाने की अभिलाषा लिए
यूँ ही इस जहा से चला जाएगा

प्यार

सोच समझकर करना पंथी यहाँ किसी से प्यार
चंडी का यह देश यहाँ के छलिया राजकुमार
किसे यहाँ अवकाश सुने जो तेरी करून कराहे
तुझ पर करे बयार यहाँ सूनी है किसकी बाँहे
बादल बन कर खोज रहा है तू किसको इस मरुस्थल में
कौन यहाँ व्याकुल हों जिसकी तेरे लिए निगाहें
फूलो की यहाँ हाट लगी है मुस्कानों का मेला
कौन खरीदेगा यहाँ तेरे सूखे आंसू दो चार
सोच समझ कर करना पंथी यहाँ किसी से प्यार

मेरा कच्चा आँगन

सौंप दी है तुम्हे अपने सपनो की धरती
अपने सपनो का आकाश
अब बोओं तुम बीज
भरो तुम रंग
इन्द्रधनुष के ....
चाँदनी के .............
अमावस के..............
या फिर मेरे-तुम्हारे
फिर जियो तुम और पियो तुम
लौटा नही सकते तुम मुझे
मेरे हिस्से के जमीं अम्बर
क्योकि अब मैं नहीं हूँ...............
मैं तो हो गयी हूँ तुम............
आती है ना तुम्हे
महक मेरे कच्चे आँगन की
अपने दिल से ..................
एक तस्वीर जो ख्वाबो को सजा जाती है
कितने सोये हुए जज्बात जगा जाती है
आज भी प्यार से पुरनम है वो नजर की शबनम
स्याह रातों मं थपक दे के सुला जाती है

प्रतीक्षा के पल

जहाँ भी देखू तुम्ही हो हर ओर
प्रतीक्षा के पल फिर कहा किस ओर ......

चेहरे पर अरुणाई खिल जाती है
धड़कने स्पंदन बन मचल जाती है
यादों की बारिश में नाचे मन मोर...............

कब तनहा हूँ जब साथ तुम हो बन परछाई
साथ देख कर तुम्हारा खुदा भी मांगे मेरी तन्हाई
मेरे हर क्षण को सजाया तुमने चितचोर...............

मेरे संग चाँद भी करता रहता है इंतज़ार
तेरी हर बात को उससे कहा है मैंने कितनी बार
फिर भी सुनता है मुस्कुरा कर, जब तक न होती भोर.................

तुम्हारे लिए हूँ मैं शायद बहूत दूर
तुम पर पास मेरे जितना आँखों के नूर
मेरी सांसो को बांधे तेरे स्नेह की डोर ...................

खुश रहो

ज़िन्दगी है छोटी, हर पल में खुश रहो ...
ऑफिस में खुश रहो, घर में खुश रहो ...

ჯહઔહჯ═══■■═══ჯહઔહჯ

आज पनीर नहीं है , दाल में ही खुश रहो ...
आज जिम जाने का समय नहीं , दो कदम चल के ही खुश रहो ...

ჯહઔહჯ═══■■═══ჯહઔહჯ

आज दोस्तों का साथ नहीं, टीवी देख के ही खुश रहो ...
घर जा नहीं सकते तो फ़ोन कर के ही खुश रहो ...

ჯહઔહჯ═══■■═══ჯહઔહჯ


आज कोई नाराज़ है, उसके इस अंदाज़ में भी खुश रहो ...
जिसे देख नहीं सकते उसकी आवाज़ में ही खुश रहो ...

ჯહઔહჯ═══■■═══ჯહઔહჯ

जिसे पा नहीं सकते उसकी याद में ही खुश रहो
Laptop न मिला तो क्या , Desktop में ही खुश रहो ...

ჯહઔહჯ═══■■═══ჯહઔહჯ


बिता हुआ कल जा चूका है , उसकी मीठी यादों में ही खुश रहो ...
आने वाले पल का पता नहीं ... सपनो में ही खुश रहो ...

ჯહઔહჯ═══■■═══ჯહઔહჯ


हँसते हँसते ये पल बिताएँगे, आज में ही खुश रहो
ज़िन्दगी है छोटी, हर पल में खुश रहो

Friday 5 December, 2008

किसी ने किसी की तरफ़ नही देखा

शहर ने अंधी गली की तरफ़ नही देखा
जिसे तलक थी उसी की तरफ़ नही देखा
तमाम उम्र गुजारी ख़याल में जिसके,
तमाम उम्र उसी की तरफ़ नही देखा
जो आईने से मिला आइना तो झुंझलाया'
किसी ने अपनी कमी की तरफ़ नही देखा,
सफर के बीच ये कैसा बदल गया मंजर,
की फ़िर किसी ने किसी की तरफ़ नही देखा,