Saturday 6 December, 2008

क्या चाँद मेरा है

चाँद को देखते हुए मैंने सोचा
क्या ये चाँद मेरा है
पर वो चाँद
जो किसी सूरज की रौशनी से इतरा रहा
उसे क्या मालूम
कोई दूर खड़ा
एक कोने से उसे निहार रहा
पर क्या वह उसे बता सकेगा
तुम्हारी चाँदनी मेरे अन्दर मे उजाला कर रही है
मुझे जीने का सहारा दे रही है
वह अंधेरे कोने में खड़ा हो के यह सोच रहा
क्या चाँद यह समझ सकेगा
कोई एक अपने अन्दर असीम उत्साह लिए
यह सोच रहा की
क्या यह चाँद मेरा होगा
लेकिन
क्या वह उजाला सह सकेगा
शायद नही
उसे चाँद चाहिए
लेकिन वह अपने अंदर के अंधेरे से डरता है
शायद यही अँधेरा उसकी नियति है
वह सूरज से लड़ सकता है
पर
चाँद की चाँदनी उसे जला रही है
वह चाँद के पास नही जाता
शायद उसे डर है
उसके मन मे एक सवाल है
क्या चाँद उसे अपना अँधेरा भी देगा
या वह कुछ पाने की अभिलाषा लिए
यूँ ही इस जहा से चला जाएगा

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