फिर एक कहानी सी दोहराई जाए है
नींद इन आंखों से चुराई जाए है
हमे मालूम है इसका भी अंत दर्द होना है
क्यूँ एक खुशी दिल के करीब लाई जाए है
मैं हूँ शोलो का दीवाना तपिश से प्यार है मुझको
ए शबनम ठहर जा आंखों में नमी आए जाए है
चंद अशआर, कुछ आंसू धड़कता हुआ एक दिल
मुद्दतो बाद ए दौलत कमाई जाए है
जाऊं कहाँ इस गली में पशोपेश में हूँ अनिल
कभी जनाजा जाए है कभी शहनाई जाए है
Sunday 7 December, 2008
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