मैं और गम
जब हम हुए
वो मोगरा हरसिंगार सी
तुम्हारी खुशबू
खिलते कमल सी हंसी
सुबह की ओंस में
डूब से नम हुए
मैं और तुम
जब हम हुए
पीपल के पत्तों पर मेंहदी
जैसे तुम्हारे हाथ
चेरी के रंग जैसे होंठ
पछवा हवा से साँसें
फासलें कितने कम हुए
मैं और तुम
जब हम हुए
उंगलिया छुई-मुई सी
लौट लौट गयी हथेलियों में
पलकों के घूंघट में बंद
रही तुम्हारी चाहत
फ़िर हम ही तो बेशरम हुए
मैं और तुम
जब हम हुए
मानसूनी बादलों सी जुल्फें
दांत बिजली की चमक
बातें सावनी रिमझिम
तुम हमारी इबादत
हमारे धरम हुए
मैं और तुम
जब हम हुए
Saturday 13 December, 2008
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