Saturday, 6 December 2008

मेरा कच्चा आँगन

सौंप दी है तुम्हे अपने सपनो की धरती
अपने सपनो का आकाश
अब बोओं तुम बीज
भरो तुम रंग
इन्द्रधनुष के ....
चाँदनी के .............
अमावस के..............
या फिर मेरे-तुम्हारे
फिर जियो तुम और पियो तुम
लौटा नही सकते तुम मुझे
मेरे हिस्से के जमीं अम्बर
क्योकि अब मैं नहीं हूँ...............
मैं तो हो गयी हूँ तुम............
आती है ना तुम्हे
महक मेरे कच्चे आँगन की
अपने दिल से ..................

No comments: