Thursday 13 November, 2008

कोई तो होता

कोई तो होता?
मैं जिस के दिल की किताब बनता
मैं जिस की चाहत का खवाब बनता
मैं ठंडे मौसम की लम्बी रातों में
यादें बन कर अजाब बनता**
कोई तो होता जो मेरी ख्वाइश में उठ कर रातों को खूब रोता
दुखो की चादर लपेट कर हजूम दुनिया से दूर होता
मैं रूठ जाता वो मनाता मुझ को चाहे कसूर मेरा होता
कोई तो होता?

शिकायत भी बहुत है

शिकवे भी बहुत है शिकायत भी बहुत है
इस दिल को मगर उनसे मोहब्बत भी बहुत है
आ जाते है मिलने वो तसव्वुर में हमारी
एक शख्स की इतनी सी इनायत भी बहुत है

तन्हा सी जिंदगी

तन्हा सी जिंदगी में तन्हा है हर रास्ता,
दोस्तों यारो से जैसे टूटा हो वास्ता,
सभी हैं साथ पर नजाने किसकी कमी है,
इतनी खुशियों में नजाने कैसी गमी है।
क्यो पतझड़ में सावन का दीदार करता हूँ,
क्यो हर घड़ी सिर्फ़ तेरा इंतज़ार करता हूँ,
तू कौन है कहा है, इस सब से अनजान हूँ,
क्या मेरी तरह , तू भी परेशान है

गुनगुनाते हुए आँचल की हवा दे मुझ को,

गुनगुनाते हुए आँचल की हवा दे मुझ को,
उंगलिया फेर कर बालों में सुला दे मुझ को
जिस तरह फालतू गुलदान परे रहते है
अपने घर के किसी कोने से लगा दे मुझ को
याद कर के मुझे तकलीफ ही होती होगी
एक किस्सा होऊं पुराना सा भुला दे मुझ को
डूबते डूबते आवाज तेरी सुन जाऊं
आखिरी बार तू साहिल आवाज लगा दे मुझको

हमें ख़ुद अपनी मोहब्बत नही मिली

ऐसा नही के हम को मोहब्बत नही मिली
जैसी चाहते थे हम को वो उल्फत नही मिली
मिलने को ज़िन्दगी में कई हमसफ़र मिले
पर उन की तबियत से तबियत नही मिली
चेहरों में दूसरों के तुम्हे ढूँढ़ते रहे
सूरत नही मिली तो कहीं सीरत नही मिली
बहुत देर से आया तू मेरे पास क्या कहूँ
अल्फाज़ ढूँढने की भी मोहलत नही मिली
तुझ को गिला रहा के तवज्जो न दी तुझे
लेकिन हमें ख़ुद अपनी मोहब्बत नही मिली
हर शख्स ज़िन्दगी में बड़ी देर से मिला
कोई भी चीज़ वक्त ज़रूरत नही मिली
हम को तो तेरी आदत अच्छी लगी
अफ़सोस के तुझ से मेरी आदत नही मिली

अपनी किस्मत में कभी वो थी ही नही

ख्वाब टूटे हुए, दिल दुखाते रहे,
देर तक वो हमे याद आते रहे
काट ली आंसुओं में जुदाई की रात,
शेर कहते रहे, गाने गुनगुनाते रहे…
तेरे जलवे पराये हुए मगर गम नही,
ये तस्सल्ली भी अपने लिए कम नही,
हमने तुमसे किया था जो वफ़ा का वादा,
साँस जब तक चली , हम निभाते रहे…
किसको मुजरिम कहें अब करें किससे गिला,
रिश्ता टुटा, न उनकी न मेरी थी रज़ा,
अपनी किस्मत में कभी वो थी ही नही,
ख्वाब पलकों पे जिसके सजाते रहे…

Saturday 8 November, 2008

जख्म

बहुत उदास है एक शख्स तेरे जाने से...
हो सके तू लौट आ किसी बहाने से...
तू लाख खफा सही मगर एक बार तो देख...
कोई टूट गया है तेरे दूर जाने से....
कितनी जल्दी ये मुलाकात गुज़र जाती है.....
प्यास बुझती नही के बरसात गुज़र जाती है...
अपनी यादों से कहदो यूँ न आया करे ......
नींद आती नही और रात गुज़र जाती है।
ये दिल न जाने क्या कर बैठा।
मुझसे पूछे बिना ही फ़ैसला कर बैठा।
इस ज़मीन पर टूटा सितारा भी नही गिरता।
और ये पागल चाँद से दोस्ती कर बैठा।
वो याद आए भुलाते-भुलाते,
दिल के ज़ख्म उभर आए छुपाते छुपाते।
सिखाया था जिसने ग़म में मुस्कुराना,
उसी ने रुला दिया हसातें-हसातें !!

दस्तक

दरवाजे पर हर दस्तक का, जाना पहचाना चेहरा है!
रोज़ बदलती है तारीखें, वक्त मगर यूँ ही ठहरा है!
हर दस्तक है उनकी दस्तक, दिल यूँ ही धोखा खाता है!
जब भी, दरवाजा खुलता है, कोई और नज़र आता है!
जाने वो कब आएगा, जिसको बरसो से आना है!
या, बस यूँ ही रास्ता ताकना, इस जीवन का जुर्माना है!

Sunday 2 November, 2008

क्या चले गए जाने वाले?

मन पूछ रहा है बार-बार, क्या चले गए जाने वाले?
यदि जानाथा तों आयें क्यों, आँगन में आ मुस्कुराये क्यों?
जीवन-संगीत बजा साथी, वीणा के तार हिलाए क्यों?
उलझी तारे बिखरा के अब, क्या चले गए जाने वाले?
हम बैठे रह गए मन-मसोस, मन में संचित कर विरह भार!
वह यादें बन गयी आज मेरे, व्याकुल जीवन का मृदु-आधार;
करके मेरा आँगन सूना-क्या चले गए जाने वाले?

क्या नींद तुम्हे आ जाती है?

रजनी के काले आँचल में, सूनापन सा छा जाता जब!
तारो की आँख मिचौनी में भी, तमका राज्य समाता जब!
मन की पीडाये कसक-कसक कर, आंसू बन छा जाती है!
प्राणों के अंतरतम में भी, सुप्त उमंगें जग आती है!
हम तो हो विह्वल, यही बता दो तुम!
क्या नींद तुम्हे आ जाती है?

Saturday 1 November, 2008

यादें

कुछ क्षण की मुस्काने देकर, वो विरह व्यथा दे चले गए!
उन पीडाओं को सींच सींच कर मैं जी बहलाया करता हूँ!

जिस तट से तेरी नाव गयी, वह तट ही अब है मीत मेरा!
पर, लहरों का मुख चुम-चुम कर, वापिस आ जाता गीत मेरा!
घंटो उस निर्जन में, आशा के महल बनाया करता हूँ!
निस्तब्ध निशा में छेड़ के सरगम मीत बुलाया करता हूँ!

उफनते सागर सा यौवन यह, चहूं ओर बिखर कर जलता है!
घायल चाहों से जडित ह्रदय, अनबुझी आग सा जलता है!
कुछ कहे, अनकहे गीतों को, फ़िर से दुहराया करता हूँ!
सांसों के अनबोले स्वर में, थककर सो जाया करता हूँ!!

जिन विश्वासों के साथ पली, संचित स्मृतिया जीवन की!
वह डोरी जिसके साथ बंधी, सब आशाये पुलकित मन की!
बेदर्द हवा के झोंको से, मैं उन्हें बचाया करता हूँ!
कुछ गढ़-अनगढ़ सपनों में, स्वयं को बिखराया करता हूँ!!

जीने का क्या है, जीते है, सांसों का स्पंदन काफी है!
अवरुद्ध व्यथा से थकित हृदय में, गति का विभ्रम ही काफी है!
सावन की नशीली रातों से , यादों को चुराया करता हूँ!
और घाव हरे टूटे दिल के, बैठा सहलाया करता हूँ!!