कोई तो होता?
मैं जिस के दिल की किताब बनता
मैं जिस की चाहत का खवाब बनता
मैं ठंडे मौसम की लम्बी रातों में
यादें बन कर अजाब बनता**
कोई तो होता जो मेरी ख्वाइश में उठ कर रातों को खूब रोता
दुखो की चादर लपेट कर हजूम दुनिया से दूर होता
मैं रूठ जाता वो मनाता मुझ को चाहे कसूर मेरा होता
कोई तो होता?
Thursday 13 November, 2008
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment