Sunday, 2 November 2008

क्या नींद तुम्हे आ जाती है?

रजनी के काले आँचल में, सूनापन सा छा जाता जब!
तारो की आँख मिचौनी में भी, तमका राज्य समाता जब!
मन की पीडाये कसक-कसक कर, आंसू बन छा जाती है!
प्राणों के अंतरतम में भी, सुप्त उमंगें जग आती है!
हम तो हो विह्वल, यही बता दो तुम!
क्या नींद तुम्हे आ जाती है?

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