यदि जानाथा तों आयें क्यों, आँगन में आ मुस्कुराये क्यों?
जीवन-संगीत बजा साथी, वीणा के तार हिलाए क्यों?
उलझी तारे बिखरा के अब, क्या चले गए जाने वाले?
हम बैठे रह गए मन-मसोस, मन में संचित कर विरह भार!
वह यादें बन गयी आज मेरे, व्याकुल जीवन का मृदु-आधार;
करके मेरा आँगन सूना-क्या चले गए जाने वाले?
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