Thursday 19 August, 2010

sapna

mera koi sapna hi nahi hai
ya maine sapna dekhna hi chod diya hai
mujhe apne aap se koi ummeed nahi hai
ya maine ummeed karni chod di hai
meri koi pasand hi nahi hai
ya maine khud ko napasand karna shuru kar diya hai
bahar ki duniya mujhe raas nahi aati ha
mere andar sab kuch toota hooaa hai
main apni tootan kisse kahoon
tumse kahte hue main darta hoon
aur doosro ko main samjha nahi sakta
tum hi merei aasha ho
ummeed ki aakhiri kiran ho
tum hi woh ho
jo meri tootan ko samet sakti hai
is bikhre hue birene ko sametkar
ek khubsurat sa gulshan bana sakti ho
par kya main tumhe yah samjha paoonga
shaayad nahi lekin kyon
shaayad mere andar ek dar hai
yadi tum na samajh saki
ya tumne is bikhre hue gulshan ko jodne se inkar kar diya
shaayad tab main vilin ho jaaoon bikhar jaoon
apne tootan ke andar ya bahar
shayaad tumhere liye ek sadharan si na ho
per mere liye to yah ek bikhrav hai
apne ummeedo ke bikherne ki
aashaaoo ke tootne ki
shayad main isliye tumhe kahne se darta hoon
shyad main khue ke bikherne se nahi darta
per ummeddon ki akhiri kiran ke doobne se darta hoon

Monday 7 June, 2010

ये प्यार नही है खेल प्रिये

मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये
तुम एम. ए. फ़र्स्ट डिवीजन हो, मैं हुआ मैट्रिक फ़ेल प्रिय
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये
तुम फौजी अफ़्सर की बेटी, मैं तो किसान का बेटा हूँ
तुम रबडी खीर मलाई हो, मैं सत्तू सपरेटा हूँ
तुम ए. सी. घर में रहती हो, मैं पेड के नीचे लेटा हूँ
तुम नयी मारूती लगती हो, मैं स्कूटर लम्बरेटा हूँ
इस कदर अगर हम छुप-छुप कर, आपस मे प्रेम बढायेंगे
तो एक रोज़ तेरे डैडी अमरीश पुरी बन जायेंगे
सब हड्डी पसली तोड मुझे, भिजवा देंगे वो जेल प्रिये
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये
तुम अरब देश की घोडी हो, मैं हूँ गदहे की नाल प्रिये ।
तुम दीवली क बोनस हो, मैं भूखों की हडताल प्रिये ।
तुम हीरे जडी तश्तरी हो, मैं एल्मुनिअम का थाल प्रिये ।
तुम चिकेन-सूप बिरयानी हो, मैन कंकड वाली दाल प्रिये ।
तुम हिरन-चौकडी भरती हो, मैं हूँ कछुए की चाल प्रिये ।
तुम चन्दन-वन की लकडी हो, मैं हूँ बबूल की चाल प्रिये
मैं पके आम सा लटका हूँ, मत मार मुझे गुलेल प्रिये ।
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये ।

Friday 16 April, 2010

एक जन्म और

तुम किसी अन्य जन्म में मिलना
मैं भी इन्तजार करूंगा 
पर इस जन्म की तरह मत मिलना
जिसमे तुम्हारा मुझसे मिलना तो क्या
मेरे सपनो में आना भी वर्जित है
खैर .......................
कोरे कागज़ पर कविता लिख देना 
कोरी शिकायत नहीं होती
रंज भी होता है
फालतू के मोह पर 
खामखाँ की गई मोहब्बत पर
या बहूत किये गए किसी निर्मोही के इंतज़ार पर 
फिर भी मिलना तो ऐसे जन्म में मिलना 
जिसमे अँधेरी रातों में से हौसलों के लिए 
जुगनू उदाहरण ना बने
आँखों में आये पानी के लिए 
अपने अजीज कारन ना बने
वैसे भी ..........
पैरो की काबिलियत का सबूत 
मंजिले नहीं राहे देती है
सो किसी और जन्म में मिलने की 
किसी से आसीस भी मांगना
तो मंजिल पर पहुचने की नहीं
राहों में सलामती की मांगना

Friday 2 April, 2010

हाँ मैं तुमसे मिलना चाहता हूँ

मैं तुमसे मिलना चाहता हूँ
मिलके मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ
तुमसे मिलने के लिए नित नए बहाने ढूंढता हूँ
कभी दोस्त कभी कोई और, मैं दूसरो को ढूंढता हूँ
मैं हर बार छिपे हुए यह इजहार करता हूँ
हाँ मैं तुमसे मैं मिलना चाहता हूँ
मेरी इस बेकरारी की कोई सीमा नहीं है
मेरी इस तड़प का कोई अंत नहीं है
फिर भी मैं तुमसे यह कहने से डरता हूँ
हाँ मैं तुमसे मिलना चाहता हूँ
मेरी नजर हर जगह तुम्हे ढूंढती है
मेरा मन हर बार कहता है तुम यहाँ आओगी
मेरा दिल हर बार मेरा साथ छोड़ता है
हर जगह हर पल वो तुम्हे ढूंढता है
यहाँ तक की अब मैं भी बदल रहा हूँ
अन्दर से तो तुम्हारा था
अब बाहर से तुम जैसा हो रहा हूँ
लेकिन फिर भी मैं तुमसे मिलना चाहता हूँ
तुम मुझे रोज मिलती हो मेरे सपनो में
तुम मुझे इस जहा में कभी न मिलना
हाँ मेरे सपनो में तुम आती रहना
तुमसे मिलने के बाद शायद मैं तुमसे आँख ना मिला सकूँ
या मैं इतना खुश हो जाऊं मैं तुम्हे ही भूल जाऊं
मेरा सपना हकीकत बन गया और मैं खुद को भूल जाऊं
यह सब तुम्हे शायद तुम्हे पसंद आये या ना आये
इसलिए तुम मुझसे कभी ना मिलना
फिर मैं तुमसे मिलना चाहता हूँ
मिलके मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ
हाँ मैं तुमसे मिलना चाहता हूँ

बस एक बार रुको

मेरे पास तुम्हे देने के लिए कुछ भी नहीं है
कोई भाव नहीं ना ही कोई स्वपन
बस एक समपर्ण है, एक अहसास है
मैं खुश हूँ की तुम आयी
मेरा मन तुम्हारे स्वागत के लिए बेक़रार है
पर मेरा यह भावहीन चेहरा
मुझे रोक रहा है
मुझसे कह रहा है
तुम मेरे लिए नहीं हो
नहीं मैं गलत हूँ
मैं तेरे लिए नहीं हूँ
मैं जितना तुम्हारे लिए आगे आऊँगा
तुम उतनी ही दूर चली जाओगी
क्या यह सत्य है
शायद नहीं अथवा हाँ
लेकिन मेरा डर
उसने मेरे दिल को दबा रखा है
मैं अपने अंतर्द्वंद में चुपचाप खड़ा
केवल अपने आपसे लड़ रहा हूँ
और तुम शायद मेरे सामने से जा रही हो
मैं कहना चाह रहा हूँ की रूकों,
बस एक बार रुको
सिर्फ मेरे लिए,
या एक अनजाने के लिए
पर मैं शायद नहीं कह पा रहा हूँ
तुम्हे खोने का डर मेरे ऊपर हावी है
और तुम मेरे पास से जा रही हो

Friday 19 March, 2010

pyar woh hamko bepanah kar gaye
na jane kyoon hame tanha chod gaye
chahat thi unke ishq mein fana hone ki
per woh wada karke phir moonh mod gaye

Tuesday 16 March, 2010

अनुभूतियों की अभिब्यक्ति कैसे करू
भावनाए बिखरी पड़ी है
मजबूरियों के फर्श पर
संवेदनाये आहत  है
जिंदगी के अर्श पर
अच्छा है आज मैं चुप ही रहूँ
आज मैं अकेला हूँ कैसे कहूं

Saturday 20 February, 2010

क्या मैं यह कभी कह पाऊँगा

क्या मैं तुमसे  यह कभी कह पाऊँगा
हाँ, तुम मुझे पसंद हो
मेरी धड़कन हो
मेरे खयालो में तुम ही छाई हुई हो
मेरा स्वपन मेरा ख्याल मेरी चेतना
सब में तुम ही तुम समाई हुई हो
फिर भी मैं,
क्या कभी कह पाऊँगा
की मैं तुम्हे भूलने के लिए
तुमसे दूर भागता हूँ
अपनी इच्छा चाहत सभी को एक तरफ करता हूँ
पर तुम उतना ही मेरे ऊपर छाई जा रही हो
क्या मैं यह कभी समझ पाऊँगा
मैं तुमसे ही दूर क्यों भागता हूँ
क्यूं जब भी मुझे यह अहसास होता है
की तुम मेरे पास आ रही हो
मैं उसी पल अपने को कैद कर लेता हूँ
मैं खुद को खुद के अन्दर छिपा लेता हूँ
क्यां मैं यह कभी खुद से कह पाऊँगा
की मैं जैसा भी हूँ जो भी हूँ अच्छा हूँ
पर नहीं शायद,
शायद मैं खुद को ही नापसंद हूँ
इसलिए मैं किसी को कह नहीं सकता
मेरी चाहत क्या है, मेरी इच्छा क्या है
मैं  खुद को नहीं कह पाता की मुझे पसंद क्या है
बाहर की दुनिया में मुझे सब चाहते है
पर अपने अन्दर मैं एक लड़ाई लड़ रहा हूँ
इसमें मैं हारता ही रहा हूँ
क्या मैं यह कभी कह पाऊँगा
मेरी लड़ाई में तुम मेरा साथ दो
शायद नहीं
क्योंकि जब भी कोई मेरे करीब आता है
मैं ओर भी तनहा हो जाता हूँ
उसे खोने का डर इतना होता है
उसे अपने सामने से जाते हुए देखता हूं
चलो जो भी है अच्छा ही है
बहार की दुनिया के लिए मैं अच्छा हूँ
पर अपने अन्दर मैं लड़ता ही रहूँगा
पर तुम मेरे अन्दर कभी ना आना
क्योंकि उसके बाद मैं जीतूंगा या हारूंगा
और मैं यह कभी सह नहीं सकता
क्योंकि जीत मेरी नहीं है और हारना मैंने सीखा नहीं है
शायद लड़ना ही मेरी नियति है
अपने आप से, अपने लिए अपनी प्रभुता के लिए
शायद तुम यह समझ सकोगी
मैं यह समझा सकूंगा
शायद नहीं
इसलिए क्या मैं यह कभी कह पाऊँगा
लेकिन मैं यह सुन भी नहीं पाऊँगा

मुलाकात

जाने हमको यह मुलाकात कहा ले जाये
बातों बातों में कोई बात कहा ले जाए
जिस्म को काट के आँखों में थमा हैं पानी
देखिये दर्द की यह बरसात कहा ले जाए
उनकी महफ़िल ही नहीं शहर में मकतल भी हैं
क्या खबर गर्दिशे हालात कहा ले जाये
तुम मेरे ख्वाब संभालो तो सफ़र पे निकलू
इस कदर बोझ कोई साथ कहा ले जाए
हम भी एक उम्र गवांकर जिन्हें हल न कर सके
जिंदगी अब वह सवालात कहा ले जाये
जिन्दगी गर्म हवाओ का सफ़र ही दोस्त
कोई यह फूल से जज्बात कहा से ले जाये

Thursday 14 January, 2010

कौन हूँ मैं


कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं ,.
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं .

एक दोस्त है कच्चा पक्का सा ,
एक झूठ है आधा सच्चा सा .
जज़्बात को ढके एक पर्दा बस ,
एक बहाना है अच्छा अच्छा सा .

जीवन का एक ऐसा साथी है ,
जो दूर हो के पास नहीं .
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं ,
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं .

हवा का एक सुहाना झोंका है ,
कभी नाज़ुक तो कभी तुफानो सा .
शक्ल देख कर जो नज़रें झुका ले ,
कभी अपना तो कभी बेगानों सा .

जिंदगी का एक ऐसा हमसफ़र ,
जो समंदर है , पर दिल को प्यास नहीं .
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं ,
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं .

एक साथी जो अनकही कुछ बातें कह जाता है ,
यादों में जिसका एक धुंधला चेहरा रह जाता है .
यूँ तो उसके न होने का कुछ गम नहीं ,
पर कभी - कभी आँखों से आंसू बन के बह जाता है .

यूँ रहता तो मेरे तसव्वुर में है ,
पर इन आँखों को उसकी तलाश नहीं .
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं ,
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं.. मेरा परिचय""मिट्टी का तन, मस्ती का मन,
क्षण भर जीवन, मेरा परिचय"

Wednesday 6 January, 2010

चलो अब शाम की बातें करते हैं

कुछ लम्हे तो जी लिए हैं भरपूर


अब आराम की बातें करते हैं

जिंदगी है बहुत दौड़-धूप

चलो अब शाम की बातें करते हैं



रात चैन से सोए नहीं

सुबह से हैं हम जागे हुए

जीवन की आपाधापी में

कहाँ-कहाँ नहीं हैं भागे हुए

थक कर हुए हैं चूर

चलो अब छाँव की बातें करते हैं



घुटन में जी रहे है लोग यहाँ

धुँआ है हर तरफ फैला हुआ

झूठी मुस्कानों से भरे चेहरे

मन मगर है मैला हुआ

कुछ देर घूम आएँ शहर से दूर

चलो अब गाँव की बातें करते हैं



पल पल घटते जीवन में

जोड़ने की धुन में जिए जाते हैं

गुणा- भाग के फेर में

हम एक दिन शेष बन कर रह जाते हैं

जीवन में बचा है फिर भी बहुत सुरूर

चलो अब जाम की बातें करते हैं



कभी हँस के- कभी रो के

हम सब रिश्तों को यहाँ ढोते हैं

कभी बुनते हैं हम सपने

कभी हम सपनों को यहाँ बोते हैं

बेतहाशा दौड़ती जिंदगी न जाए छूट

चलो अब लगाम की बातें करते हैं



कुछ लम्हे तो जी लिए हैं भरपूर

अब आराम की बातें करते हैं

जिंदगी है बहुत दौड़-धूप

चलो अब शाम की बातें करते हैं