अब जिंदगी में तल्खियों का रंग ही आए
कलम को दर्जे गम मरने का कुछ ढंग ही आए
इस कदर मासूमियत किस काम की है दोस्त
करीब जब भी आए दूरियों के संग ही आए
खुदा जाने ये किसने लिख दिया छत के नसीब में
जब आए तो फ़कत एक कटी पतंग ही आए
करें चर्चा क्या उसकी अंदाजे बयानी का
जिसकी हँसी के सामने जलतरंग ही आए
एक तरफ़ फ़र्ज़ है रोज़गार है प्यार है एक ओर
अब इस कशमकश से हम अनिल तंग ही आए
Saturday, 6 December 2008
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1 comment:
bahot hi behtarin ghazal likhi hai aapne ,ghazalka makta to kamal ka hai bahot khub...
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