कौन सा है रास्ता जो यों मुझे बुला रहा?
धुंधला ये स्वप्न मुझे कौन है दिखा रहा?
बदली कई बार मग़र राह अभी मिली नहीं
चलने को जिसपर मेरा मन कुलबुला रहा।
बैठ! थ! यों ही, पर वैसे ना रह सक!
सफ़र कोई और है जो मुझे बुला रहा।
यहाँ-वहाँ, कहीं-कोई, झकझोर सा मुझे गया
कोई है सवाल जो पल-पल मुझे सता रहा।
Saturday, 18 October 2008
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