क्या याद हमारी आती है?
सावन आया बदल घुमड़े, आकुल मन सहसा डोल उठा!
धरती का आँचल भीग गया, जब प्राण पपीहा बोल उठा!
झींगुर की जब पायल खनकी, अम्बर को बिजुरी चीर गई!
इन मस्त फुहारों में साथी, क्या याद हमारी आती है?
भँवरे की बंशी सुन, कलियों ने अलसाई पलके खोली!
मादक सपनो में डूब गयी, तब विरहिन की नजरे भोली!
कोयल कूकी अमराई में, हम कूक उठे बेबस होकर!
आँखे भींगी, प्रिये तुमको भी, क्या याद हमारी आती है?
हर प्यासी धड़कन में छिपकर, निर्मोही, तेरा प्यार पले!
साँसों की सुनी महफिल में, गूंजे अफसाने दर्द भरे!
वीणा की उलझ गयी तारें, चहूँ ओर शोर तूफानों का!
हम तो है विह्वल तुमको भी, क्या याद हमारी आती है?
बिन पिए बहारे बहक रही, कण-कण में मस्ती छायी है!
ऐसे में कोई लेके गागर, इस सुने पनघट पे आयी है!
प्रीतों पर पहरा लगे यहाँ, हर साँस कैद हो जाती है!
जब जग सोए, शबनम रोये, क्या याद हमारी आती है!
Saturday, 18 October 2008
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