Saturday 18 October, 2008

मेरी कहानी

यह हार एक विराम है
जीवन महासंग्राम है
तिल-तिल मिटूँगा पर दया की भीख मैं लूँगा नहीं।

वरदान माँगूँगा नहीं।।********


क्‍या हार में क्‍या जीत में
किंचित नहीं भयभीत मैं
संधर्ष पथ पर जो मिले यह भी सही वह भी सही।

वरदान माँगूँगा नहीं।। ********

चाहे हृदय को ताप दो
चाहे मुझे अभिशप दो
कुछ भी करो कर्तव्‍य पथ से किंतु भागूँगा नहीं।

वरदान माँगूँगा नहीं!!!

No comments: