मैं नींद के इंतज़ार में करवट बदल रहा था
और वो मेरे पायदाने में सिसक रही थी
मैं किसी और खयालो में डूबा हुआ था
नींद की बाहें मुझे दूंढ़ रही थी
जिसके खयालो ने मुझे अपने में डूबा लिया
उसका हाल न जाने कैसा था
पर मेरे खयालो में तो वही छाई थी
और
नींद ने भी अपना आशियाना शायद उसकी बाँहों में बना लिया
या
मेरी बेरुखी ही उसे वहा ले गयी
फिर
मैं एक दिन नींद की खोज में निकला
वो मिली
मैंने पुछा
तुम मेरे पास से क्यों चली गयी
उसने कहा
तुम तो हरदम उसके खयालो में खोये रहते हो
इसलिए तुम मुझे कहा मिलते हो
मैं जब भी तुम्हारे पास आती हूँ
तुम हमेशा वही चले जाते हो
मैंने भी थक हार कर सोचा
जो तुम्हे इतना प्रिये है
मैं भी उसी के पास चली जाती हूँ
शायद तब तुमको मैं पा सकूंगी
और मेरी किस्मत देखो
तुम अब मेरे पास ही आ गए
Sunday, 4 October 2009
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