काफी समय पहले बी आर विप्लवी जी की कुछ पंक्तियाँ पढी थी ....मुझे पसंद आईं .....आप भी गौर फ़रमाएँ
पूछकर जात -घराने मेरे,
सब लगे ऐब गिनाने मेरे,
छेड़ मत गम के फ़साने मेरे,
दर्द उभरेंगे पुराने मेरे,
जात फिर इल्म से बड़ी निकली,
काम ना आये बहाने मेरे,
चंद लम्हों की मुलाकातों में,
कैद लाखों हैं जमाने मेरे,
छाँव आँचल की जब मिली माँ की,
भर दिए जख्म, दुआ ने मेरे,
अश्क बरसे तो सब गुमान बहे,
घुल गए मैल ,पुराने मेरे,
इक सिफर आखिरात का हासिल था ,
रह गए , जोड़-घटाने मेरे,
जब से तू बस गया निगाहों में,
चूक जाते हैं निशाने मेरे,
शहर में घर , न गाँव में खेती,
है कहाँ ठौर, ठिकाने मेरे,
विप्लवी खोजते हुए खुशियाँ,
सब लुटे ख्वाब सुहाने मेरे
Sunday, 4 October 2009
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