वे एहसानों का हिसाब रखते हैं..
डरते हैं अब तो,
पास जाते उनके,
सुना है की,
वे एहसानों का हिसाब रखते हैं.......
बालों की सफेदी से,
मौत भुलावे में,
कहीं भेज न दे बुलावा,
बोतलों में नहीं ,
वे मटकों में खिजाब रखते हैं.....
कत्ल करने से गुरेज नहीं,
सजा का भी खौफ नहीं,
एक हाथ में खंज़र,
दूसरे में कानून की किताब रखते हैं....
ये अलग बात है की देखते नहीं,
नजर भर में पलट दें , तख्त-ताज,
लफ्जों में क़यामत,
आँखों में सैलाब रखते हैं....
आदमियों की भीड़ में,
इंसानों की तलाश हुई मुश्किल,
इंसान की सूरत सा ,लोग,
चेहरे पर नकाब रखते हैं..
Sunday, 4 October 2009
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