Saturday, 28 March 2009

मैं ख़ुद ही अपनी तलाश में हूँ

मैं ख़ुद ही अपनी तलाश में हूँ मेरा कोई रहनुमा नहीं है!
वो क्या दिखायेंगे राह मुझको जिन्हें ख़ुद अपना पता नहीं है!!

ये आप नजरे बचा बचा कर अब और क्या देखते है मुझको
तुम्हारे काम आ सके तो ले क्यों हमारे जी का मकाम नहीं है

मैं शर रतो की तलाश में हूँ मगर ये दिल मानता नहीं है
मगर गमे जिंदगी न हो तो जिंदगी का मज़ा नहीं है

मिला आइना है तुम अपनी सूरत सवार लो और ख़ुद ही देखो
जो नुख्स होगा दिखाई देगा ये बेजुबान बोलता नहीं ही

1 comment:

ktheLeo (कुश शर्मा) said...

कौन मसीहा है यहां
और कौन यहां रहबर है।
हर इन्सान को इस राह पे
अकेले ही चलना होगा

है अन्धेरा भी घना,
और हवायें भी सर्द,
शमा चाहे कि नहीं
उसे हर हाल में जलना होगा।