दो घड़ी तन्हा भी बैठ जाए
कैसे हो ख़ुद से ये पुछा जाए
नहीं दीखता बहुत करीब से भी
तुमको कुछ दूर से देखा जाए
नही मिलती कोई जगह ऐसी
जहाँ जाकर तुम्हे सोचा जाए
सबको ख़ुद ही तलाशनी मंजिल
जाते राही को ना रोका जाए
घर तो अपना सजा लिया ऐ साहिल
दिल के जालो को भी झाडा जाए
Wednesday, 14 January 2009
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