किसी के इतने पास न जा
के दूर जाना खौफ़ बन जाये
एक कदम पीछे देखने पर
सीधा रास्ता भी खाई नज़र आये
किसी को इतना अपना न बना
कि उसे खोने का डर लगा रहे
इसी डर के बीच एक दिन ऐसा न आये
तु पल पल खुद को ही खोने लगे
किसी के इतने सपने न देख
के काली रात भी रन्गीली लगे
आन्ख खुले तो बर्दाश्त न हो
जब सपना टूट टूट कर बिखरने लगे
किसी को इतना प्यार न कर
के बैठे बैठे आन्ख नम हो जाये
उसे गर मिले एक दर्द
इधर जिन्दगी के दो पल कम हो जाये
किसी के बारे मे इतना न सोच
कि सोच का मतलब ही वो बन जाये
भीड के बीच भी
लगे तन्हाई से जकडे गये
किसी को इतना याद न कर
कि जहा देखो वोही नज़र आये
राह देख देख कर कही ऐसा न हो
जिन्दगी पीछे छूट जाये
ऐसा सोच कर अकेले न रहना,
किसी के पास जाने से न डरना
न सोच अकेलेपन मे कोई गम नही,
खुद की परछाई देख बोलोगे "ये हम नही
Saturday, 31 January 2009
Wednesday, 14 January 2009
एक हारने वाले की व्यथा
कही किसी जगह पर था कोई एक
ख़ुद से भागता हुआ , ख़ुद से हारा हुआ
कहीं किसी और के पास अपनी खुशी को तलाशता हुआ
अपने हर तरफ उसे नजर आता था
हार का महासागर लहराता हुआ
लेकिन जीत की इच्छा अपने मन में लिए
वो अपनी हर हार में जीत को तलाशता रहा
उसे मिली जीत हर बार टुकडो में
वो तलाशता रहा इसे पूरे में
फिर एक दिन
उसे हार - जीत में मजा आने लगा
अधूरापन उसके मन को भने लगा
उसके जीवन में बदलाव आने लगा
अचानक उसे उसकी पूर्णता नजर आने लगी
खुशी उसके कदम चूमने लगी
लेकिन ,
वो फिर भागने लगा
अपनी जमीन से दूर, चाहतो से दूर
चाहने वालो से दूर
उसे लगा, यह एक छलावा है भूलभुलैया है
हारना ही उसकी नियति है
ये जीत उसके जीवन में किधर से आ रही है
समय के इस मोड़ पर खड़ा वह
ख़ुद से यह सवाल कर रहा है
मैं भ्रमित क्यों हूँ, मुझे हार ही क्यो मिलती है
लेकिन चारो तरफ के सन्नाटे से
कोई जवाब नही आता
जीत उसके लिए बनी ही नही शायद,
वह कल भी हारा था,
वह आज भी हारेगा शायद
लेकिन इस हार के बावजूद वह फिर भागेगा
शायद अपने आप के लिए या अपनी खुशी के लिए
उसे मालूम है की हारना ही उसकी नियति है
पर यही हार एक दिन,
जीत का दीदार कराएगी
उसकी नियति में हारना ही हो
लेकिन जीत की उसकी इच्छा जिन्दा रहेगी
शायद यही उसकी जीत है
या,
हार के आगे सम्पूर्ण समर्पण
या यही उसकी जिन्दगी है शायद
ख़ुद से भागता हुआ , ख़ुद से हारा हुआ
कहीं किसी और के पास अपनी खुशी को तलाशता हुआ
अपने हर तरफ उसे नजर आता था
हार का महासागर लहराता हुआ
लेकिन जीत की इच्छा अपने मन में लिए
वो अपनी हर हार में जीत को तलाशता रहा
उसे मिली जीत हर बार टुकडो में
वो तलाशता रहा इसे पूरे में
फिर एक दिन
उसे हार - जीत में मजा आने लगा
अधूरापन उसके मन को भने लगा
उसके जीवन में बदलाव आने लगा
अचानक उसे उसकी पूर्णता नजर आने लगी
खुशी उसके कदम चूमने लगी
लेकिन ,
वो फिर भागने लगा
अपनी जमीन से दूर, चाहतो से दूर
चाहने वालो से दूर
उसे लगा, यह एक छलावा है भूलभुलैया है
हारना ही उसकी नियति है
ये जीत उसके जीवन में किधर से आ रही है
समय के इस मोड़ पर खड़ा वह
ख़ुद से यह सवाल कर रहा है
मैं भ्रमित क्यों हूँ, मुझे हार ही क्यो मिलती है
लेकिन चारो तरफ के सन्नाटे से
कोई जवाब नही आता
जीत उसके लिए बनी ही नही शायद,
वह कल भी हारा था,
वह आज भी हारेगा शायद
लेकिन इस हार के बावजूद वह फिर भागेगा
शायद अपने आप के लिए या अपनी खुशी के लिए
उसे मालूम है की हारना ही उसकी नियति है
पर यही हार एक दिन,
जीत का दीदार कराएगी
उसकी नियति में हारना ही हो
लेकिन जीत की उसकी इच्छा जिन्दा रहेगी
शायद यही उसकी जीत है
या,
हार के आगे सम्पूर्ण समर्पण
या यही उसकी जिन्दगी है शायद
एक खवाब ये देखा जाए
दो घड़ी तन्हा भी बैठ जाए
कैसे हो ख़ुद से ये पुछा जाए
नहीं दीखता बहुत करीब से भी
तुमको कुछ दूर से देखा जाए
नही मिलती कोई जगह ऐसी
जहाँ जाकर तुम्हे सोचा जाए
सबको ख़ुद ही तलाशनी मंजिल
जाते राही को ना रोका जाए
घर तो अपना सजा लिया ऐ साहिल
दिल के जालो को भी झाडा जाए
कैसे हो ख़ुद से ये पुछा जाए
नहीं दीखता बहुत करीब से भी
तुमको कुछ दूर से देखा जाए
नही मिलती कोई जगह ऐसी
जहाँ जाकर तुम्हे सोचा जाए
सबको ख़ुद ही तलाशनी मंजिल
जाते राही को ना रोका जाए
घर तो अपना सजा लिया ऐ साहिल
दिल के जालो को भी झाडा जाए
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