Wednesday, 6 January 2010

चलो अब शाम की बातें करते हैं

कुछ लम्हे तो जी लिए हैं भरपूर


अब आराम की बातें करते हैं

जिंदगी है बहुत दौड़-धूप

चलो अब शाम की बातें करते हैं



रात चैन से सोए नहीं

सुबह से हैं हम जागे हुए

जीवन की आपाधापी में

कहाँ-कहाँ नहीं हैं भागे हुए

थक कर हुए हैं चूर

चलो अब छाँव की बातें करते हैं



घुटन में जी रहे है लोग यहाँ

धुँआ है हर तरफ फैला हुआ

झूठी मुस्कानों से भरे चेहरे

मन मगर है मैला हुआ

कुछ देर घूम आएँ शहर से दूर

चलो अब गाँव की बातें करते हैं



पल पल घटते जीवन में

जोड़ने की धुन में जिए जाते हैं

गुणा- भाग के फेर में

हम एक दिन शेष बन कर रह जाते हैं

जीवन में बचा है फिर भी बहुत सुरूर

चलो अब जाम की बातें करते हैं



कभी हँस के- कभी रो के

हम सब रिश्तों को यहाँ ढोते हैं

कभी बुनते हैं हम सपने

कभी हम सपनों को यहाँ बोते हैं

बेतहाशा दौड़ती जिंदगी न जाए छूट

चलो अब लगाम की बातें करते हैं



कुछ लम्हे तो जी लिए हैं भरपूर

अब आराम की बातें करते हैं

जिंदगी है बहुत दौड़-धूप

चलो अब शाम की बातें करते हैं

1 comment:

Unknown said...

Amit Ji , Merrut ki jagah jo chaho woh City daaal dena ta Phir ' Dil todne wali' likh sakte ho --

Kal hi likhi hai kisi ke liye .

Arz kiya hai .........

"Jo bachega woh Time hoga, Jo kharch hoga woh umar hogi !

duayen samet ke fakeer laut jaayega tu jaane kiske ghar hogi !


Bhula dena ravayat bhi hai , dastur bhi aadat bhi teri

Ham bhi mita denge Teri yaad, thodi si bhi jo kasar hogi !


Aaaakhri sher hai yeh dhyaan se isko sun Merrut waleee !

Eisa todenge dhaga ki Na koi awaaz hogi , No khabar hogi "