मुझे हरदम किसी तलाश क्यूं हैं
मुझे हर घड़ी किसी का इंतज़ार क्यूं है'
मैं हर रोज किसकी उम्मीद में दिन गुजारता हूँ
रातों को तन्हाई में किसी के आने की आस क्यों करता हूँ
मैंने तो अपने हर ओर एक दीवार खड़ी की है
इसको पार करने की किसी को इजाजत नहीं दी है
फिर इस दिल को किसी चाँदनी की चाहत क्यूं है
मैंने ख़ुद ही अपने दिल को दिमाग का गुलाम बनाया
फिर मुझे इस दिल की आजादी की चाह क्यों है
मैंने इन दीवारों को बहुत ही मजबूत बनाया
फिर भी मुझे इस्नके टूटने की हसरत क्यों हैं
यहाँ कौन किसी के लिए इंतज़ार करता है
फिर भी मुझे किसी का इंतज़ार क्यों है
Friday, 12 June 2009
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